युवा शिव की तरह गले में गरल और सिर पर विवेक रूपी गंगा धारण करें : बापू

शीर्षस्थ रामकथा मर्मज्ञ ने किया आह्वान.चित्रकूट निकलने से पूर्व मोरारी बापू ने कारसेवकपुरम में अर्पित किया नौ दिवसीय कथा परिक्रमा माला का दूसरा पुष्प

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Nov 2021 11:38 PM (IST) Updated:Sun, 28 Nov 2021 11:38 PM (IST)
युवा शिव की तरह गले में गरल और सिर पर विवेक रूपी गंगा धारण करें : बापू
युवा शिव की तरह गले में गरल और सिर पर विवेक रूपी गंगा धारण करें : बापू

रघुवरशरण, अयोध्या

तात्विक, मर्मस्पर्शी, माधुर्ययुक्त और भाव से भरी रामकथा की रसधार प्रवाहित करने के लिए प्रसिद्ध शीर्षस्थ रामकथा मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने युवाओं का आह्वान किया कि वे शिव के लक्षण धारण करें।

वह चित्रकूट के लिए कथा परिक्रमा पर निकलने से पूर्व कारसेवकपुरम में कथा परिक्रमा का दूसरा पुष्प अर्पित कर रहे थे। रामचरितमानस के अयोध्या कांड में वर्णित मंगलाचरण की मीमांसा करते हुए बापू ने कहा, तीन श्लोंको के मंगलाचरण का पहला श्लोक शिव एवं पार्वती के प्रति समर्पित है। बापू ने शिव को सिद्धप्रज्ञ बताते हुए उनके स्वरूप की ओर ध्यान आकृष्ट कराया। कहा, शिव के सिर पर विवेक रूपी गंगा है। इसी के साथ युवाओं को लक्ष्य करते हुए बापू ने कहा कि मौज करो, पर सिर पर विवेक की गंगा रखो। शिव के सिर पर स्थित बालचंद्र की तात्विकता परिभाषित करते हुए बापू ने कहा, जीवन में कभी मत समझना कि मैं पूर्ण हूं। पूर्ण होते ही चंद्र पर क्षय लागू हो जाता है, पूर्ण चंद्र में कलंक भी लग जाता है। जबकि बाल चंद्र निष्कलंक होता है। युवाओं से शिव की प्रेरणा ग्रहण करने का आह्वान करते हुए बापू ने कहा, जीवन की यात्रा में जहर भी पीना पड़ेगा। इसे शिव के सूत्र से धारण करना है। यह जहर लोगों के बीच वमन मत करना और ग्रहण भी मत करना। इसी के साथ बापू ने युवा का लक्षण भी परिभाषित किया। कहा, जो विष पीने की हिम्मत रखता है, वही युवा है और सच्चा युवा तो साधु एवं बुद्ध पुरुष होता है। मंगलाचरण के अगले श्लोक की व्याख्या करते हुए बापू ने कहा, रामचरितमानस का एक और नाम साधु चरितमानस भी है। इस श्लोक के आधार पर बापू ने श्रीराम की साधुता और स्थितिप्रज्ञता पर प्रकाश डाला।

प्रवचन के इस मोड़ पर बापू ने श्रीराम के साथ रामनगरी और श्याम के साथ श्यामनगरी को सुमधुर तान छेड़ कर नमन किया- जय-जय सीते/ जय-जय राम/ जय-जय श्री अयोध्या धाम/ जय-जय राधा/ जय-जय श्याम/ जय-जय श्री वृंदावन धाम। यह भगवान का मानसावतार

- रामचरितमानस के सभी सात कांडों के मंगलाचरण में प्रयुक्त 23 श्लोकों और उत्तरकांड के समापन पर दो श्लोकों का हिसाब करते हुए बापू ने बताया कि रामचरितमानस में भगवान के सभी 24 अवतारों का प्रतिनिधित्व है और स्वयं रामचरितमानस भगवान का 25वां अवतार है। देवभाषा में वर्णित मानस के यह 25 श्लोक इन्हीं अवतारों के परिचायक हैं। बापू के अनुसार भगवान के 24 अवतार तो मंदिरों में विराजते हैं, पर 25 वां मानसावतार तो आपकी झोली में ही है अर्थात आपके पास ही है। बस इसे झोली से हृदय तक ले जाना है और यात्रा पूर्ण हुई समझें।

परमहंस से लेकर मोदी-योगी के प्रति कृतज्ञता

- रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण से उत्साहित दिखे बापू ने मंदिर आंदोलन के अग्रदूत साकेतवासी महंत रामचंद्रदास परमहंस का बार-बार स्मरण किया तथा अयोध्या को रामनगरी के साथ ही योगीजी वाली नगरी बताया और कहा कि अयोध्या का सचमुच अब विश्रामदायी विकास हो रहा है। बापू ने काशी के सौंदर्य और विकास के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देते हुए उन्हें वरिष्ठ, बलिष्ठ और यशस्वी बताया।

संतों के प्रति ज्ञापित की आत्मीयता

- बापू का संतों से लगाव परिभाषित हुआ। शुक्रवार से अयोध्या प्रवास के दौरान बापू ने न केवल एक दर्जन से अधिक रामनगरी के प्रतिनिधि संतों से भेंट की, बल्कि प्रवचन के दौरान भी संतों के प्रति आत्मीयता ज्ञापित करते रहे। श्रोताओं की कतार मणिरामदास जी की छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास, जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य, शीर्ष पीठ रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास, दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेशदास, आंजनेय सेवा संस्थान के अध्यक्ष महंत शशिकांतदास, मंगलभवन पीठाधीश्वर रामभूषणदास कृपालु, मधुकरी संत मिथिलाबिहारीदास आदि संतों से भी सज्जित थी, तो बापू के निकट सहयोगी के रूप में सतुआ बाबा संतों के सम्मान और उनकी सुविधा के प्रति तत्पर रहे।

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