अनेक मंदिरों में प्रवाहित हुई आस्था की धार
रामजन्मभूमि और कनकभवन के अलावा दशरथमहल रामवल्लभाकुंज बिड़ला धर्मशाला आदि मंदिरों में भी आस्था की धार प्रवाहित हुई। दशरथमहल में मर्मज्ञ कथाव्यास आचार्य रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने श्रीराम के जन्म के समय उनके सौंदर्य का मनोहारी विवेचन किया।
अयोध्या : रामजन्मभूमि और कनकभवन के अलावा दशरथमहल, रामवल्लभाकुंज, बिड़ला धर्मशाला आदि मंदिरों में भी आस्था की धार प्रवाहित हुई। दशरथमहल में मर्मज्ञ कथाव्यास आचार्य रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने श्रीराम के जन्म के समय उनके सौंदर्य का मनोहारी विवेचन किया। आचार्य ने वाल्मीकि रामायण का उदाहरण देते हुए बताया अत्यंत शुभ योग में मां कौशल्या के गर्भ से जिस शिशु का जन्म हुआ, वे नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण वाले, अत्यंत तेजोमय, परम कांतिवान तथा अत्यंत सुंदर हैं। श्रीराम के कुछ ही अंतराल पर जन्मे भाई भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न भी अत्यंत तेजोमय हैं। कथाव्यास ने राम के आदर्श राजत्व की भी मीमांसा की। इससे पूर्व पीठाधीश्वर बिदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य के संयोजन में विरासत के अनुरूप दशरथमहल में राम जन्मोत्सव का उल्लास बिखरा। कोरोना संकट को देखते हुए यद्यपि बाहरी श्रद्धालुओं के लिए मंदिर का मुख्य द्वार बंद रखा गया, पर संपर्क द्वार के माध्यम से एकत्र हुए स्थानीय श्रद्धालुओं ने राम जन्मोत्सव की भावधारा में जमकर डुबकी लगाई। बिदुगाद्याचार्य के कृपापात्र रामभूषणदास कृपालु के अनुसार दशरथमहल उस विरासत से अनुप्राणित है कि यहीं युगों पूर्व राजा दशरथ का महल था और श्रीराम की बाल्यावस्था इसी महल में व्यतीत हुई। विशिष्ट साधना केंद्र के रूप में सदियों से स्थापित रामवल्लभाकुंज में भी कोरोना संकट के बावजूद राम जन्मोत्सव की हिलोर उठी। जन्मोत्सव की मध्याह्न बेला से पूर्व मर्मज्ञ गायकों एवं संतों ने बधाई गान के साथ भक्ति में पगे गीतों से समां बांधा। उत्सव का संयोजन कर रहे रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास कहते हैं, श्रीराम हमारे प्राण हैं और जिस तरह संकट चाहे जितना बड़ा हो हम अंतिम दम तक प्राण बचाने का यत्न करते हैं, उसी तरह आज हम कोरोना संकट के बीच श्रीराम से शाश्वत-सनातन संबंधों को आगे बढ़ाने का यत्न कर रहे हैं। बिड़ला धर्मशाला में मां सीता एवं अनुज लक्ष्मण के साथ श्रीराम की आदमकद प्रतिमा काफी आकर्षक मानी जाती है और राम जन्मोत्सव के विशेष साज-श्रृंगार से इन विग्रहों की आभा और निखर उठी। हालांकि आराध्य के सौंदर्य का पान करने के लिए श्रद्धालु न के बराबर थे। धर्मशाला के प्रबंधक पवन सिंह चौहान कहते हैं, श्रीराम सबका मंगल करें, पर उनकी साज-सज्जा-सेवा स्वांत: सुखाय है।