भगवान राम के बाद जानकी जन्मोत्सव पर भी संकट का साया
भगवान राम के बाद अब जानकी जन्मोत्सव पर भी कोरोना
अयोध्या : भगवान राम के बाद अब जानकी जन्मोत्सव पर भी कोरोना का संकट मंडरा रहा है। राम जन्मोत्सव 21 अप्रैल को था और कोरोना के चलते रामनगरी का यह प्रमुख उत्सव प्रतीकात्मक आयोजन तक सिमट कर रह गया था। तब से तो कोरोना संकट और भी गहरा गया है और उसी अनुपात में जानकी जन्मोत्सव पर ग्रहण लगता प्रतीत हो रहा है।
जानकी जन्मोत्सव 21 मई को है। कोरोना संकट न होता, तो जानकी जन्मोत्सव की गहमा-गहमी सप्ताह भर पूर्व से ही बयां होने लगती, कितु इस बार सन्नाटा है। संक्रमण के भय एवं कोरोना कर्फ्यू के चलते श्रद्धालुओं का आगमन नगण्य है। दूसरी ओर मंदिरों के प्रबंधन से जुड़े लोग जानकी जन्मोत्सव की तैयारी में तो हैं, पर यह पारंपरिक उत्सव के बजाय प्रतीकात्मक आयोजन के रूप में सिमटता प्रतीत हो रहा है। मिसाल के तौर पर रामनगरी में मां जानकी का मायका यानी जनकपुर का प्रतिनिधित्व करने वाला जानकीमहल मंदिर है। यहां जानकी जन्मोत्सव भव्यता की मिसाल के तौर पर मनाया जाता है।
वैशाख शुक्ल प्रतिपदा यानी नौ दिन पूर्व से ही जानकी महल सहित रामनगरी के सैकड़ों मंदिरों में जानकी जन्मोत्सव की छटा बिखरती है। राम जन्मोत्सव की तरह प्रथम बेला में रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथ रामचरितमानस का सामूहिक रूप से पाठ होता है और सायंकालीन सत्र में मां जानकी के जन्म की खुशी बधाई गीतों की महफिल से बयां होती है। इस उत्सव का अतिरेक वैशाख शुक्ल नवमी यानी जानकी जन्मोत्सव के दिन परिभाषित होता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिरों में एकत्र हो मां जानकी के प्राकट्योत्सव पर आस्था अर्पित करते हैं। मध्याह्न रामनगरी के हजारों मंदिरों में एक साथ राम जन्मोत्सव की तरह जानकी जन्मोत्सव पर भी प्राकट्य आरती का घंटा-घड़ियाल गूंजता है और यही स्थापित होता है कि यह उत्सव वस्तुत: रामनगरी ही नहीं, बल्कि श्रीराम के साथ मां सीता के करोड़ों उपासकों का लोकोत्सव है।
जानकी महल के प्रबंधन से जुड़े आदित्य सुल्तानिया कहते हैं, कोरोना संकट को देखते हुए बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को रोक दिया गया है और आस्था एवं सांस्कृतिक महत्व के जिन कार्यक्रमों में हजारों लोग शामिल रहा करते थे, उसमें दर्जनों लोगों की ही उपस्थिति सुनिश्चित कराई जा रही है। मधुकरी संत मिथिलाबिहारीदास के अनुसार निश्चित रूप से कोरोना संकट के चलते जानकी जन्मोत्सव का रंग फीका पड़ा है, कितु जानकी जन्मोत्सव की परंपरा का पालन पूरे हौसले के साथ किया जा रहा है, इसके पीछे कोरोना को चुनौती देकर अपने उत्सव, अपनी आस्था और अपनी जिदगी को निरंतर आगे ले जाने का संकल्प भी है।