नरेंद्र तो बानगी, खेल तो असली कमीशन का
ब्लॉक पूराबाजार में सफाई कर्मचारी से कंप्यूटर ऑपरेटर बने नरेंद्र वर्मा तो महज मोहरा है। असली कहानी है इसके पीछे कमीशनबाजी की। किसी भी ब्लॉक में एक भी कंप्यूटर ऑपरेटर एडीओ पंचायत से संबंद्ध सर्विस प्रदाता कंपनी के नहीं मिलेंगे.
अयोध्या : ब्लॉक पूराबाजार में सफाई कर्मचारी से कंप्यूटर ऑपरेटर बने नरेंद्र वर्मा तो महज मोहरा है। असली कहानी है इसके पीछे कमीशनबाजी की। किसी भी ब्लॉक में एक भी कंप्यूटर ऑपरेटर एडीओ पंचायत से संबंद्ध सर्विस प्रदाता कंपनी के नहीं मिलेंगे। किसी ब्लॉक में कंप्यूटर के जानकार सफाई कर्मचारी तो किसी ब्लॉक में जिले के अधिकारियों की सिफारिशी। ब्लॉक पूराबाजार में सामने आया खेल जिले के सभी ब्लॉकों तक फैले होने की चर्चा है। सफाई कर्मी से कंप्यूटर ऑपरेटर बने नरेंद्र वर्मा ने पत्नी सुमन वर्मा, भाई संदीप वर्मा, चचेरे भाई व चाचा के नाम मजदूरी की धनराशि ब्लॉक पूराबाजार की कई ग्राम पंचायतों में निकाली है। जांच का दायरा अन्य ब्लॉकों तक न पहुंचने पाए आनन फानन में उसके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति कर मामले को दबाने का प्रयास है। हालांकि बीडीओ केडी गोस्वामी व एडीओ पंचायत अयोध्या प्रसाद मिश्र दोनों पहले से ऐसे किसी खेल से अज्ञानता जताते हैं। संज्ञान में आने पर तत्काल गोलमाल की धनराशि की रिकवरी व कार्रवाई की संस्तुति की जानकारी देते हैं।
दरअसल, इस खेल के पीछे का अर्थशास्त्र कमीशन का है। इसे इस तरह समझिए। दो लाख की परियोजना का अनुमोदन करने का क्षेत्राधिकार ग्राम पंचायत को है। लेकिन परियोजना की एमबी जेई करता है। पंचायत सचिवों की मानें तो भुगतान मद में पांच फीसद का कमीशन एमबी करने का होता है। दो लाख से ज्यादा व ढाई लाख रुपये तक के बीच की परियोजना का अनुमोदन एडीओ पंचायत करते हैं। अनुमोदन का एक फीसद कमीशन और जुड़ जाता है। ग्राम प्रधान व पंचायत सचिव का इससे अलग है। कमीशन की उसी धनराशि की निकासी करीब दो से तीन हजार रुपये फालतू मजदूरी व करीब 20 से 25 हजार के करीब सामग्री के नाम पर एमबी कराकर निकाली जाती है। पंचायत सचिव को प्रति परियोजना पांच सौ रुपया कंप्यूटर ऑपरेटर का अलग से देना होता है। यही धनराशि मजदूरी व सामग्री के नाम पर उन लोगों के नाम बैंक एकाउंट में ट्रासंफर की जाती है जिसकी वापसी हो। कंप्यूटर ऑपरेटर के माध्यम से इसकी वापसी पंचायत सचिवों के लिए आसान है।