सुप्रीम फैसला भी नहीं ला सका फकीरेराम के अच्छे दिन
गत वर्ष नौ नवंबर को सुप्रीम फैसले से रामलला के अच्छे दिन तो आ गये पर फकीरेराम को बदहाली से निजात नहीं मिल सकी है। जबकि फकीरेराम को बदहाली की कीमत रामलला के ही चलते चुकानी पड़ रही है.
अयोध्या : गत वर्ष नौ नवंबर को सुप्रीम फैसले से रामलला के अच्छे दिन तो आ गये, पर फकीरेराम को बदहाली से निजात नहीं मिल सकी है। जबकि फकीरेराम को बदहाली की कीमत रामलला के ही चलते चुकानी पड़ रही है। सुप्रीम फैसला आने के बाद उम्मीद जगी कि रामजन्मभूमि के साथ उन मंदिरों के दिन बहुरेंगे, जो रामजन्मभूमि के इर्द-गिर्द 67.77 एकड़ भूमि अधिग्रहण के साथ अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस संघर्ष में करीब दो सौ वर्ष पूर्व स्थापित सियापियाकेलिकुंज नाम का मंदिर भी शामिल रहा। इस मंदिर के संस्थापक आराध्य में लीनता और फकीरों जैसी अलमस्ती के कारण फकीरेराम के नाम से जाने जाते थे और उन्होंने मां जानकी के साथ मंदिर में भगवान राम के जिस विग्रह की स्थापना की, वे भी फकीरेराम के नाम से सुविख्यात हुए। यह संस्थापक आचार्य की आला रूहानी हैसियत थी कि फकीरेराम मंदिर कुछ ही वर्षों में रामनगरी की चुनिदा पीठों में शुमार हुआ। पौने दो शताब्दी की वैभव यात्रा में फकीरेराम मंदिर की उत्सवधर्मिता मिसाल बनी रही। वह 1993 का वर्ष था, जब विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद आस-पास की 67.77 एकड़ भूमि अधिग्रहीत की गयी। अधिग्रहण की जद में आकर कई मंदिर भी अपनी अस्मिता खो बैठे। हालांकि फकीरेराम का सियापियाकेलिकुंज अधिग्रहण से मुक्त था, पर अधिग्रहण का साया उस पर ग्रहण बनकर मंडराता रहा। मंदिर में श्रद्धालुओं का आवागमन और उत्सवधर्मिता 1993 से ही बाधित हुई, तो कुछ ही वर्षों में अधिग्रहीत परिसर की सुरक्षा में लगी सीआरपीएफ की पूरी कंपनी ने मंदिर में डेरा डालकर रही-सही कसर पूरी कर दी। गत पौने तीन दशक से आलम यह है कि मंदिर में साधु-संत गिनती के रह गये हैं। सुरक्षा का हवाला देकर सीआरपीएफ ने संतों-श्रद्धालुओं का आवागमन निषिद्ध कर दिया है। ऐसे में जहां रख-रखाव बाधित होने से फकीरेराम मंदिर खंडहर में तब्दील होता जा रहा है, वहीं अधिग्रहण के बाद दशकों के त्रास का सामना करने वाले महंत युगलकिशोरशरण को दीर्घ अवसाद के चलते प्राण गंवाना पड़ा।
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जर्जर भवन से जान-माल के नुकसान का अंदेशा
- दो वर्ष पूर्व मंदिर की महंती संभालने वाले महंत रघुवरशरण फकीरेराम की समृद्ध विरासत लौटाने के प्रति संकल्पित तो हैं, पर उन्हें कदम-कदम पर अड़चन का सामना करना पड़ रहा है। मंदिर का अधिकांश हिस्सा जर्जर हो चला है और यह कभी भी ढह सकता है। ऐसे में जान-माल के गंभीर नुकसान का अंदेशा जताया जा रहा है। जिलाधिकारी एवं एसएसपी की ओर से महंत को मरम्मत कराने का आदेश भी मिल गया है, पर मामला सीआरपीएफ के कमांडेंट के निरीक्षण पर टिक गया है। वे आश्वासन के बावजूद मौके पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस बीच 10 जुलाई को मंदिर के छज्जा का कुछ हिस्सा गिर गया। संयोग अच्छा था कि कुछ ही फासले पर तुलसी उतार रहे महंत बाल-बाल बच गए।