संघर्ष के ट्रैक पर सवार श्रद्धा दौड़ा रही मेट्रो

रुदौली (अयोध्या): सपने वह नहीं जो हम सोते समय देखते हैं, बल्कि सपने वह हैं जो हमें सोने नहीं देते है

By JagranEdited By: Publish:Fri, 17 Jan 2020 12:55 AM (IST) Updated:Fri, 17 Jan 2020 06:08 AM (IST)
संघर्ष के ट्रैक पर सवार श्रद्धा दौड़ा रही मेट्रो
संघर्ष के ट्रैक पर सवार श्रद्धा दौड़ा रही मेट्रो

रुदौली (अयोध्या): सपने वह नहीं जो हम सोते समय देखते हैं, बल्कि सपने वह हैं जो हमें सोने नहीं देते हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का यह सूत्र वाक्य श्रद्धा की सफलता का मूल मंत्र बन गया। महज 13 वर्ष की उम्र में जब पिता का साया सिर से उठा, तो एक पल ऐसा लगा कि सारे सपने धूमिल हो जाएंगे, लेकिन श्रद्धा धैर्य से अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष के ट्रैक पर सवार हो आगे बढ़ी। सपना पूरा होने का वक्त आया तो मां ने भी साथ छोड़ दिया। ऐसे में बड़ी बहन वर्षा ने सहारा दिया। अब जिले भर की बालिकाओं का रोल मॉडल बन चुकी श्रद्धा दिल्ली मेट्रो में स्टेशन कंट्रोलर पद पर तैनात हैं।

मख्दूमजादा मोहल्ला निवासी श्रद्धा कश्यप के पिता शिवशंकर कश्यप रुदौली तहसील में लेखपाल पद पर तैनात थे। उनकी तीन पुत्रियां वर्षा, श्रद्धा व कंचन हैं। पुत्र नहीं होने का उनको कभी कोई गम नहीं रहा। बेटियों को इंजीनियर बनाने का स्वप्न लेकर अच्छी शिक्षा दिला रहे थे। अचानक वर्ष 2005 में सेवाकाल के दौरान ही उनकी गंभीर बीमारी से मौत हो गई। इसके बाद बड़ी पुत्री वर्षा कश्यप ने पढ़ाई छोड़ कर पिता के स्थान पर नौकरी की। तहसील में लिपिक पद पर उसकी पोस्टिग हुई। मझली बहन श्रद्धा उस वक्त कक्षा आठ में पढ़ रही थी तो छोटी बहन कंचन का स्कूल शुरू होने वाला था। वर्षा ने न केवल मां को संभाला बल्कि छोटी बहनों के सपनों को उड़ान दी। श्रद्धा का लखनऊ के एक कॉलेज में बीटेक में इलेक्ट्रानिक एंड कम्युनिकेशन ट्रेड में दाखिला हुआ। बीटेक करने के बाद श्रद्धा का दिल्ली मेट्रो में चयन हो गया तो परिवार में खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। इसी बीच वर्ष 2016 में मां राजपती भी चल बसीं। छोटी बहन कंचन बीकॉम करने के बाद दिल्ली में ही श्रद्धा के पास रह कर बैंक सेवा की तैयारी कर रही है। इन तीनों बहनों की संघर्ष से भरी सफलता की कहानी पर हर किसी को नाज है। श्रद्धा बताती हैं कि उनकी सफलता माता-पिता के साथ बड़ी बहन को समर्पित है। उन्होंने न पिता की कमी महसूस होने दी और न ही भाई की। हर वक्त वह साथ खड़ी रहीं। शिक्षक आशीष शर्मा बताते हैं कि श्रद्धा शुरू से ही मेधावी छात्रा रही है। आज वह जिले भर की बालिकाओं के लिए प्रेरणा बनी है। मोहल्लावासी अधिवक्ता गया शंकर बताते हैं कि तीनों बहनों पर हम लोगों को नाज है।

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इनसेट

बहनों की शादी की भी फिक्र

बड़ी बहन वर्षा बताती है कि पिता हमेशा कहते थे कि बेटियां बेटों से कम नहीं। उन्होंने जो सपना देखा था वह ईश्वर की कृपा से पूरा हो गया। वर्षा के पति रेलवे में कार्यरत हैं। वह कहती हैं कि दोनों छोटी बहनों की शादी करना उनकी जिम्मेदारी है। वर्षा कहती हैं कि मुश्किल वक्त में परिवार के ही भाई हिमांशु गौड़ ने श्रद्धा को दिल्ली ले जाकर परीक्षा की तैयारी कराई है।

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