आजादी के दीवानों में जोश भरने आये थे महात्मा गांधी
मनोज तिवारी, बकेवर आजादी दिलाने की जंग के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बकेवर में आजादी के दीवानों
मनोज तिवारी, बकेवर आजादी दिलाने की जंग के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बकेवर में आजादी के दीवानों में जोश भरने के लिए आये थे। 1 नवंबर 1928 को बकेवर आए महात्मा गांधी को देखने के लिए अंग्रेजी शासकों की पाबंदी के बाद भी बड़ी तादाद में लोग सड़कों पर उतर पड़े थे। गंगा बिहारी चौधरी ने 5100 रुपये की थैली भी भेंट की थी। गांधी जी ने करीब ढाई घंटे का समय दिया था। गंगा बिहारी चौधरी के पुत्र सुरेंद्र नाथ चौधरी बताते हैं कि गांधी जी के साथ आचार्य कृपलानी भी थे। वे सबसे पहले इटावा रेलवे स्टेशन से उतरकर पुराना शहर के बजरिया छैराहा स्थित जुगल बिहारी टंडन जुग्गी लाला की कोठी पर गए। वहां उनका जोरदार स्वागत हुआ। इटावा कुछ देर रुककर वे औरैया के लिए रवाना हुए। इकदिल चौराहे पर लोगों ने रोककर उनका स्वागत किया। इसके बाद वह बकेवर कस्बे में आकर उनका काफिला औरैया रोड स्थित एक मंदिर पर आकर रुका जहां उन्होंने ढाई घंटे का समय बिताया और लोगों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। यहां से वे सीधे औरैया के लिए प्रस्थान कर गए। वह बताते हैं कि गांधी जी ने लोगों से सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने व साइमन कमीशन का डटकर विरोध करने को कहा था। जनसभा को संबोधित भी किया था। उनका चमत्कारी भाषण लोगों के दिलों को छू गया। परिणाम यह हुआ कि वर्ष 1931 और 1942 के आंदोलन में क्रांति सी आ गई। हर तरफ आजादी हासिल करने का जज्बा ही दिखाई दे रहा था। गांधी जी का ही असर था कि पूंजीवादी वर्ग ने भी विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। गांधी का चरखा हर कांग्रेस कार्यकर्ता के घर पहुंच गया। आज भी इटावावासी इस बात से रोमांचित हैं कि पूरी दुनिया को सत्य अहिसा और बंधुत्व का संदेश देने वाला यह महापुरुष कभी जिले में आया था और बकेवर जैसे कस्बे में एक मंदिर के चबूतरे पर रुककर जनसभा की, मंदिर के पास ही बने कुएं का जल भी पीया। वह बताते हैं कि उस समय उनकी आयु सात वर्ष की थी। उस समय से लेकर अब तक गांधी जी की छवि और उनके विचार उनके मानस पटल पर अंकित हैं।