पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं

सोहम प्रकाश इटावा पिता रोटी है कपड़ा है मकान है पिता छोटे से परिदे का बड़

By JagranEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 10:15 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 10:15 PM (IST)
पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं
पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं

सोहम प्रकाश, इटावा पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है

पिता छोटे से परिदे का बड़ा आसमान है

पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं

पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं

पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है

पिता है तो बच्चों को इंतजार है..। कवि ओम व्यास के ये शब्द असीम आकाश का विस्तार व समंदर की गहराई समेटे हुए हैं। पिता ही वह शख्स होता है, जो बच्चे को खुद से ज्यादा कामयाब होता देखकर खुश होता है। सफलता के आसमां पर बच्चे की उड़ान उसे प्रफुल्लित करती है। पिता के बिना अधूरी है पहचान। मुसीबतों के झंझावात से महफूज रखने वाली चट्टान है पिता। बच्चे का लड़कपन तभी तक है, जब तक उसके सिर पर पिता का साया है। कोविड महामारी के कहर का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। महामारी में पिता का साया छिना तो बचपन कुम्लहा गया है। उन पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। सारे सपने बिखर गए, शाम को पिता के आने का इंतजार नहीं रहा। 21 बच्चों के सिर से उठ गया पिता का साया कोविड महामारी ने बचपन को गहरे जख्म दिए तो 'उप्र मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना' के माध्यम से सरकार ऐसे बच्चों के जख्मों पर मलहम लगाने की कोशिश कर रही है। योजना के अंतर्गत 1 अप्रैल 2020 से लेकर 5 जून 2021 तक जनपद भर में ऐसे 22 बच्चे चिह्नित हुए हैं। इनमें 21 बच्चों के सिर से पिता का और एक बच्चे के सिर से मां का साया छिन गया है। प्रथम चरण में लाभान्वित होने वाले 10 बच्चों में से 9 बच्चों ने पिता को जबकि एक ने मां का खोया है। 10 में से 8 बच्चे सदर तहसील क्षेत्र के और एक-एक बच्चा भरथना व महेवा ब्लाक से है। इनमें सबसे छोटा छह साल का बच्चा लोहियानगर का और तीन बड़े बच्चे हैं। अड्डा श्यामलाल, अड्डा जालिम और लोहियानगर के रहने वाले 16-17 वर्ष के इन तीनों बच्चों को 11वीं से 12वीं कक्षा में प्रोन्नत होने पर लैपटॉप या टैबलेट दिया जाएगा। प्रथम चरण के सभी बच्चों को प्रतिमाह चार हजार रुपये का अनुदान मिलेगा। दूसरे चरण में शेष 12 चिह्नित लाभार्थियों के फार्मों की सत्यापन प्रक्रिया चल रही है। अलबत्ता महामारी के प्रभाव से जनपद में सैकड़ों बच्चों ने माता-पिता में से किसी एक को खोया है। स्वाभाविक तौर पर लाभार्थियों की संख्या 22 ही नहीं हो सकती। लेकिन योजना के अंतर्गत 18 वर्ष तक के वही बच्चे पात्र माने गए हैं, जिनके घर में कमाऊ शख्स नहीं रहा और करीबी अभिभावक या नाते-रिश्तेदार ने भी पालन-पोषण की जिम्मेदारी लेने से हाथ खड़े कर दिए हों। दीगर तौर पर महामारी की दोनों लहर में स्वास्थ्य विभाग का 16 जून 2021 तक कोविड मृतकों का आधिकारिक आंकड़ा 291 है। शादी योग्य होने पर बिटिया को मिलेंगे एक लाख रुपये उप्र मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना के तहत चिह्नित बालिकाओं के शादी के योग्य होने पर शादी के लिए एक लाख एक हजार रुपये दिए जाएंगे। 11 से 18 साल के बच्चों की कक्षा 12 तक की मुफ्त शिक्षा के लिए अटल तथा कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालयों में भी प्रवेश कराया जा सकेगा। ऐसे वैध संरक्षक को विद्यालयों की तीन माह की अवकाश अवधि के लिए बच्चे की देखभाल के लिए 12 हजार रुपये प्रति वर्ष खाते में भेजे जाएंगे। यह राशि कक्षा 12 तक या 18 साल की उम्र जो भी पहले पूर्ण होने तक दी जाएगी। यदि बच्चे के संरक्षक इन विद्यालयों में प्रवेश नहीं दिलाना चाहते हों तो बच्चों की देखरेख और पढ़ाई के लिए उनको 18 साल का होने तक या कक्षा 12 की शिक्षा पूरी होने तक 4000 रुपये की धनराशि दी जाएगी। बशर्ते बच्चे का किसी मान्यता प्राप्त विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया हो। कक्षा 9 या इससे ऊपर की कक्षा में अथवा व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर रहे 18 साल तक के बच्चों को टैबलेट व लैपटॉप की सुविधा दी जाएगी। ऐसे बच्चों की चल-अचल संपत्तियों की सुरक्षा के प्रबंध होंगे। 'उप्र मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना ऐसे बच्चों के लिए लागू की गई है, जिनके माता-पिता अथवा दोनों की कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गई है तथा इनके पालन-पोषण के लिए घर में कमाऊ व्यक्ति न रह गया हो। कोई करीबी अभिभवक न हो अथवा होने के बाद भी उन्हें अपनाने में सक्षम न हो। ऐसे बच्चों के भरण पोषण शिक्षा, चिकित्सा आदि की व्यवस्था के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाएगा। यदि बच्चा आवासीय शिक्षा ग्रहण करना चाहता है तो उसको प्रतिमाह चार हजार रुपये की आर्थिक मदद नहीं मिलेगी।'

सूरज सिंह, जिला प्रोबेशन अधिकारी तुम्हाए पापा भगवान के घरहे चले गए हैं.. अंशुल अभी 12 साल का ही तो है, उसके सिर से पिता का साया उठ गया। यह उम्र उसके बचपने की है, लेकिन क्रूर कोरोना ने उसका हाथ पिता की उंगली से छिटका तो पढ़ाई-लिखाई चौपट हो गई और दुनियादारी का पाठ पढ़ने लगा। बड़ी बहन 16 साल की स्नेहा और छोटी बहन 14 साल की सिमरन उसको प्यार से जानू पुकारती हैं। जानू ने 10 मई को पिता सहदेव सिंह कुशवाहा के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी तो चिता की परिक्रमा में उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। घर के लोग तसल्ली दे रहे थे, अभी बच्चा है लड़खड़ाते-गिरते संभलना भी सीख जाएगा। घर में वक्त से पहले 'समझदार' होने की ट्रेनिग ले रहा है। लेकिन पिता तो पिता ही होता है, हूक उठती है तो देहरी की तरफ दौड़ता है और ठगा सा महसूस करते हुए पलट कर मां शीला देवी से लिपट सुबकने लगता है। शीला समझाने की कोशिश करती है, तुम्हाए पापा भगवान के घरहे चले गए हैं, वहां जान वाले लौटके थोड़ई आत..और उसकी भी डरकार छूट जाती है। अमित कुशवाहा बताते हैं कि जुगरामऊ गांव में रहने वाले मामा सहदेव सिंह औरैया के चिचौली स्थित जिला चिकित्सालय में आक्सीजन सपोर्ट पर थे। ज्यादा हालत बिगड़ी तो कानपुर के लिए लेकर भागे, लेकिन रास्ते में ही आक्सीजन खत्म होने से अंतिम सांस छोड़ दी। मामा के गुजरने के बाद घर पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। मामा खुद की फोरव्हीलर गाड़ी को भरण पोषण का जरिया बनाए हुए थे। गृहस्थी बिगड़ी तो तीनों बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी नाना-नानी ने ले ली है। अब पिता की कमी तो पूरी नहीं की जा सकती। तीनों बच्चे हीड़ते हैं तो बहलाने की कोशिश करते हैं।

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