जयनारायण की शहादत पर नाज करती चंबल घाटी
मनोज तिवारी बकेवर 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले जयनारायण त्रिपाठी तब महज 28 वष
मनोज तिवारी, बकेवर
1999 में कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले जयनारायण त्रिपाठी तब महज 28 वर्ष के थे। चंबल घाटी के इस सपूत ने दुश्मन से जमकर लोहा लिया और देश की आन-बान-शान पर आंच नहीं आने दी। उनकी शहादत पर चंबल घाट नाज करती है।
सीमा पर दुश्मन से मोर्चा लेने वाले सैकड़ों वीर जवानों के साथ एक बहादुर सैनिक तहसील चकरनगर के बछेड़ी गांव के जयनारायण त्रिपाठी भी थे। उनके शौर्य की गाथा आज चंबल घाटी गाती है। उन्होंने अपने प्राण राष्ट्र रक्षा पर न्यौछावर कर दिए थे। कारगिल पर विजय की वर्षगांठ पर पूरा जिला चंबल के इस अमर शहीद को याद करता है। लोग गांव में उनकी प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए पहुंचते हैं और ग्रामीण उनको जयनारायण की जांबाजी के किस्से सुनाते हैं।
देश के लिए शहीद होने वाले 5 राजपूत रेजीमेंट के जवान जयनारायण ने मोर्चे पर डटे रहकर 12 गोलियां सीने पर झेली थीं। जम्मू में तैनाती के दौरान वह पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ का मुकाबला कर रहे थे। उनके दिलो-दिमाग में मातृभूमि के लिए न्यौछावर होने का जज्बा था। भाई रूप नारायण त्रिपाठी व भाभी बिटोली देवी बताते हैं कि जयनारायण बचपन से ही फौजी बनने का सपना देखते थे। परिवार में सात भाईयों में वह चौथे नंबर के थे।
सबसे बड़े भाई रूप नारायण बताते हैं कि उस जमाने में गांव में न तो बिजली थी और न ही टेलीविजन जैसे संसाधन। उनके भाई में सेना में जाने का जज्बा शुरू से ही था। वह हमेशा कहा करते थे, सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। कई किलोमीटर की लंबी दौड़ उनकी दिनचर्या में शामिल थी। 16 जुलाई 1999 को वह कारगिल में दुश्मन से मोर्चा लेते हुए शहीद हो गए। वह बताते हैं कि जब भाई के शहीद होने की खबर गांव में पहुंची तब वह खेत पर थे। जब गांव पहुंचे तो लोगों का हुजूम देखकर माजरा समझ गए और बेहोश होकर वहीं गिर पड़े। वह अपने नातियों को सेना में भेजना चाहते हैं। उनकी तमन्ना है, नाती भी देश की सुरक्षा के प्रहरी बनें।