मूर्तियों को रूप देकर पूज्यनीय बना रहीं अंजली

संवाद सूत्र बकेवर देवी यानी शक्ति की पूजा और उसकी आराधना का पर्व है नवरात्र। यह पर्व उ

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 04:31 PM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 01:55 AM (IST)
मूर्तियों को रूप देकर पूज्यनीय बना रहीं अंजली
मूर्तियों को रूप देकर पूज्यनीय बना रहीं अंजली

संवाद सूत्र, बकेवर : देवी यानी शक्ति की पूजा और उसकी आराधना का पर्व है नवरात्र। यह पर्व उस शक्ति की पहचान कराता है जो मां की तरह असीम शक्तियों से युक्त है। इसी परम्परा की कड़ी है अंजली जो रूढि़यों को तोड़ श्रमशील है। देवी-देवताओं के अलावा अन्य मूर्तियों का निर्माण ही अंजली के परिवार के जीवन का आधार बनता जा रहा है । शक्ति और पराक्रम से भरपूर यह महिला अपने भीतर अतुल्य ऊर्जा और क्षमता समेटे हुई है। पुरानी व सर्वमान्य धारणा है कि जाके घर चतुर नारि सुख नींद वही सोए। मतलब घर की पूरी व्यवस्था नारी शक्ति के भरोसे है। इसकी बेजोड़ मिसाल है बकेवर के विद्याविहार कालोनी निवासी अंजली। वह अपने हाथों से मूर्तियों को रूप देकर पूजनीय बनाती है। जनता कालेज मे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मूर्तिकार शैलेंद्र की सबसे छोटी बहन अंजली की शादी सात वर्ष पूर्व समथर निवासी महिपाल सिंह के साथ हुई थी। ससुराल में आने के बाद अंजली का मन ससुराल में इसलिए नहीं लगा कि वह बचपन से अपने भाई के साथ मिट्टी और सीमेंट की मूर्तियों को बनाने की कला में रचबस गयी थी। पति महिपाल ने जब पत्नी अंजली के मन को समझा तो उन्होंने भी अपनी पत्नी की कला को सम्मान दिया और बकेवर में ही भाई के पास रहने की सहर्ष अनुमति दे दी। मायके आकर अंजली अपने भाई शैलेंद्र के साथ मूर्ति निर्माण की कला मे रम गयी। अंजली का भाई अवसर विशेष पर देवी देवताओं की मूर्तियां बनती है। नाम के अनुरूप अपने को अंजली ने स्थापित किया। भाई शैलेंद्र मूर्तियों का ढांचा गढ़ता है उसमें अंजली का भी योगदान होता है। इसके बाद का पूरा काम अंजली करती है और मूर्ति में निखार लाने से लेकर मूर्ति को रंग रोगन लगाकर वह संजीवता प्रदान करती है। अंजली ने बताया कि उसके एक पुत्री व एक पुत्र है। छह वर्षीय पुत्र आयुष यूकेजी मे तो वहीं चार वर्षीय पुत्री शिप्रा एलकेजी मे अध्यनरत है। अंजली बताती है कि मूर्ति कला उसके अंतरमन में बस चुकी है। इसलिए वह इसे व्यवसाय में परिवर्तन कर चुकी है तो वहीं वह लोगों को सिखाकर मूर्ति कला को आगे भी बड़ा रही है। अंजली मूर्ति कला के साथ साथ खुद को और अन्य महिलाओं को स्वाबलंबी बनाने के उद्देश्य उसने जय दुर्गा मां स्वयं सहायता समूह का गठन भी किया है जो अपने समूह के माध्यम से छोटी-छोटी बचत करके अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बना रही है।

अंजली बताती हैं कि कोई भी युवती बेरोजगार न रहे इसके लिए उसने एक वर्कशॉप भी खोल रखी है जिसमें वह युवतियों को सिलाई कढ़ाई के प्रशिक्षण देने के साथ ब्यूटीपार्लर का काम भी सिखाने का काम करती है। अंजली का कहना है कि वह इतने सब कार्यों में व्यस्तता के बावजूद अपनी घर गृहस्थी और बच्चों को भी समय देती है। उसका कहना कि नारी की पहचान अबला से नहीं बल्कि सबला से होना चाहिए। उसने अपना मुख्य मकसद बताया कि जिस प्रकार वह मूर्ति गढ़ कर उसे संजीवता प्रदान करती है वैसे ही वह नारी समाज को भी हुनरमंद बनाना चाहती है। अंजली के इस कार्य मे उसके पति महिपाल और भाई शैलेंद्र पूरा सहयोग प्रदान करते हैं।

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