इटावा के श्मशान घाट पर हर तरफ जल रहीं चिताएं, मुक्तिधाम पर मातम के मेले में सब दिखे अकेले

आठ वर्षों में पहली बार मुक्तिधाम ने 20 अप्रैल को 24 चिताओं को जलते हुए देखा। इनमें तीन कोविड मृतक थे। इससे पहले दो दिनों में 19-19 चिताएं सजी थीं। नियत स्थान के मानक मिट गए हैं। जिसे जहां जगह मिल रही है अंतिम संस्कार की जुगाड़ निकाल रहा है।

By Edited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 07:19 PM (IST) Updated:Wed, 21 Apr 2021 07:58 PM (IST)
इटावा के श्मशान घाट पर हर तरफ जल रहीं चिताएं, मुक्तिधाम पर मातम के मेले में सब दिखे अकेले
जीवन दर्शन इतना भयावह और डरावना होगा, सोचकर रूह कांपने लगती है

इटावा (सोहम प्रकाश)। चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला..तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला..। जीवन का यही अंतिम सत्य है। राही को एक दिन सारा मेला पीछे छोड़कर अकेले जाना ही होता है। अंतिम विदाई में यमुना तलहटी स्थित श्मशान घाट मुक्तिधाम पर अब मातम का मेला तो लगता है, मगर उसमें अपनों की रुसवाई से सब अकेले होते हैं। कोविड महामारी की दूसरी लहर ने सबको अकेला सा कर दिया है। श्मशान का अंतिम सत्य किसी जीवन दर्शन से कम नहीं, मगर कोरोना काल में यह जीवन दर्शन इतना भयावह और डरावना होगा, सोचकर रूह कांपने लगती है। 

अंतिम संस्कार के लिए दो गज का फासला तक मयस्सर नहीं तो जलती चिताओं के बीच नई चिता सजाने को जगह की तलाश स्वजनों के आंसू सोख लेती है। यमुना नदी किनारे श्मशान घाट को मुक्तिधाम नाम वर्ष 2013 में मिला था। तब अंत्येष्टि के लिए 11 चबूतरों के निर्माण के साथ ही शव यात्रियों की सुविधा के लिए चार एयरकंडीशनर युक्त हाल, बरामदा, पार्क आदि का निर्माण नगर पालिका परिषद द्वारा कराया गया था। 

20 अप्रैल को 24 चिताओं को जलते हुए देखा : गुजरे आठ वर्षों में पहली बार मुक्तिधाम ने 20 अप्रैल को 24 चिताओं को जलते हुए देखा। इनमें तीन कोविड मृतक थे। इससे पहले दो दिनों में 19-19 चिताएं सजी थीं। नियत स्थान के मानक मिट गए हैं। जिसे जहां जगह मिल रही है, अंतिम संस्कार की 'जुगाड़' निकाल रहा है। महामारी के दौर में एक-एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में शव आने से चबूतरों के आसपास अंत्येष्टि के लिए जगह तलाशने का संकट उत्पन्न हो गया है। इससे पहले रोजाना चार-पांच शव आने का औसत रहा है। मुक्तिधाम पर भले ही शवों की आमद का आकंड़ा लगतार बढ़ रहा हो, मगर सरकारी रिकार्ड के तौर पर कोविड मृतकों का आंकड़ा रोजाना दो से तीन तक अटका हुआ है। दीगर तौर पर 17 अप्रैल को कोविड मृतकों की संख्या छह दर्ज की गई थी। तीन दिन से घर नहीं गए चंद्रशेखर मुक्तिधाम प्रभारी चंद्रशेखर तीन दिन से अपने लालपुरा स्थित घर नहीं जा सके हैं। वह बताते हैं कि सुबह से शाम तक लगातार शव आने से हाथ नहीं थम रहे हैं। सारा समय अंत्येष्टि कराने और लॉकर में अस्थि कलश रखने की व्यवस्था में जा रहा है। कोशिश रहती है कि शव यात्रियों को अंत्येष्टि के लिए इंतजार न करना पड़े। दीगर तौर पर कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए अंत्येष्टि में अब चंद लोग ही जुटते हैं। अंत्येष्टि के बाद अस्थि कलश लॉकर में रखने की जिम्मेदारी बखूबी निभानी पड़ती है। 

हर तरफ दिखा खामोशी का आलम : मुक्तिधाम पर अस्थि कलश रखने के लिए 36 लॉकर की व्यवस्था है। चुनावी वादा बनकर रह गया विद्युत शवदाह गृह कोविड महामारी के दौर में विद्युत शव दाहगृह की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में नेताओं ने विद्युत शवदाह गृह निर्माण का वादा तो किया, लेकिन सत्ता में आने वाले उस वादे को भूल गए। विधानसभा चुनाव में सपा से प्रत्याशी रहे नगर पालिका परिषद के पूर्व चेयरमैन कुलदीप गुप्ता संटू कहते हैं कि यदि वह विधायक चुने जाते उनकी पार्टी सत्ता में आती तो इस वादे को जरूर पूरा करते।

उन्होंने जब श्मशान घाट का जीर्णोद्वार करते हुए मुक्तिधाम का निर्माण कराया था, तब यह नहीं सोचा था कि ऐसा भी भयावह दौर आएगा जब अंत्येष्टि के लिए 11 चबूतरे भी कम पड़ जाएंगे। अब विडंबना यह कि मुक्तिधाम के मेंटीनेस पर अपने पास से पैसा खर्च करना पड़ा है। कोविड महामारी की दूसरी लहर वाकई भयावह है। पहली लहर में रोजाना शवों की आमद एक तो कभी अधिकतम सात तक रही, कुछ दिन ऐसे भी रहे, जब एक भी शव नहीं आया था।

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