नई नीति भी नहीं तोड़ पा रही शराब तस्करों को नेटवर्क

घर में तय मात्रा से अधिक शराब रखने के लिए है लाइसेंस का प्रविधान शराब तस्कर निकाल लेते हैं कोई न कोई तोड़

By JagranEdited By: Publish:Wed, 02 Jun 2021 06:29 AM (IST) Updated:Wed, 02 Jun 2021 06:29 AM (IST)
नई नीति भी नहीं तोड़ पा रही शराब तस्करों को नेटवर्क
नई नीति भी नहीं तोड़ पा रही शराब तस्करों को नेटवर्क

जासं, एटा: शराब तस्करों का नेटवर्क काफी बड़ा है। समय-समय पर अवैध शराब का जखीरा पकड़ा जाता है, लेकिन तस्करों के आकाओं के गले तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पाते। नई शराब नीति में भी ऐसा कोई प्रविधान नहीं जो इस नेटवर्क के अंतिम शख्स तक की कमर तोड़ सके। यही वजह है कि अवैध शराब का धंधा फल-फूल रहा है और सरकार को भारी राजस्व की हानि हो रही है।

जनपद में पिछले तीन सालों का रिकार्ड देखें तो पता चलता है कि पुलिस प्रशासन, आबकारी विभाग ने अवैध शराब पकड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दो साल पूर्व तो स्थिति यह थी कि कम से कम दो दर्जन ट्रक-कैंटर अलग-अलग पकड़े गए और समय-समय पर पुलिस दूसरे प्रांतों से आने वाली अवैध शराब पकड़ रही है। सवाल यह है कि सरकार ने नई आबकारी नीति लागू कर दी, लेकिन तस्करी रोकने के इंतजाम इस नीति में नहीं किए गए। दूसरे प्रांत से यहां तक अवैध शराब कैसे पहुंच जाती है। रास्ते में कई प्रांतों के बार्डर पड़ते हैं, वहां से भी ट्रक आसानी से निकल आते हैं। इन ट्रक चालकों के पास कोई कागज भी नहीं होते, यह सब साठगांठ से चलता है। यहां लाकर शराब फुटकर में बेच दी जाती है। ऐसे में कभी-कभी ट्रक चालक पकड़ लिए जाते हैं और मामला यही तक सिमट कर रह जाता है। अपर पुलिस अधीक्षक ओपी सिंह ने बताया कि शराब तस्करों की तह तक पहुंचने के प्रयास किए जा रहे हैं। जानकारियां जुटाई जा रही हैं प्रभावी कार्रवाई होगी। नहीं होती सही विवेचना:

सच तो यह है कि अवैध शराब ले जाने वाला ट्रक ड्राइवर पकड़ा जाता है, मगर यह शराब किसने, कहां से और किस के लिए भेजी, विवेचना में यह तथ्य खुल ही नहीं पाते और जो मुख्य रूप से दोषी है वह बच जाता है। यह खेल वर्षों से चल रहा है। नई आबकारी नीति

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यूपी सरकार ने इस वर्ष नई आबकारी नीति लागू की। इस नीति के तहत अगर कोई घर पर तय मात्रा से ज्यादा शराब रखता है तो उसे पर्सनल बार का लाइसेंस लेना होगा। जिसका 12 हजार रुपया शुल्क देना होगा और 51 हजार रुपये सिक्योरिटी मनी के तौर पर जमा करनी होगी। सवाल यह है कि यह नीति तो बन गई, लेकिन इसका पालन कहां होता है। आबकारी विभाग के सूत्रों की मानें तो पर्सनल बार के लिए एटा से एक भी आवेदन नहीं हुआ। हालांकि नई नीति में बार कोड की व्यवस्था की गई है, जिससे यह पता चल जाता है कि जो शराब खरीदी है वह मिलावटी तो नहीं। नई नीति में राजस्व बढ़ाने के प्रावधान तो हैं लेकिन जो राजस्व को घाटा दे रहे हैं उनके लिए ठोस कुछ नहीं है। अब नहीं दिया जाता एक ही सिडीकेट को ठेका

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पूर्व में ऐसा होता था कि एक ही सिडीकेट को ठेका दे दिया जाता था, लेकिन अब इस नीति को लाटरी और आनलाइन सिस्टम ने तोड़ दिया है। इससे माफिया पर अंकुश लगा है। अब लाटरी के माध्यम से अलग-अलग आवेदन होते हैं और जिसका नाम निकलता है उसके नाम दुकान आवंटित की जाती है। इससे माफिया की मंशा पर अंकुश लगा है और छोटे व्यवसायी अपना व्यवसाय कर रहे हैं। जिसके नाम से अलग दुकान है उसे राजस्व देना होता है। एक वर्ष का लेखा-जोखा

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- 173 अवैध शराब से संबंधित वाहन सीज

- 331 लोगों की गिरफ्तारी

- 4000 से अधिक पेटियां बरामद

- 161 आबकारी अधिनियम में एफआइआर

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