संशोधित: भूख और ठंड निकाल रही गोवंश का दम
एक ओर ठंड बेरहम हो चली है। रात के बाद यह घरों के अंदर बिस्त
एटा, जागरण संवाददाता: एक ओर ठंड बेरहम हो चली है। रात के बाद यह घरों के अंदर बिस्तरों में छिपे लोगों को भी ठिठुरन का अहसास करा रही है। जबकि खुले में तो हाड़ ही कंपा देती है। यह सरकार पर आश्रित गोवंशों के लिए जानलेवा बन गई है। तो दूसरी ओर चारे-पाने की कमी उनका दम निकाले दे रही है। सरकार ने गोशालाओं में पशुओं को ठंड और भूख से बचाने की पूरी व्यवस्थाएं जुटाने के निर्देश दिए हैं। लेकिन कागजी निर्देश एक ओर हैं और जमीनी हकीकत दूसरी ओर, जो कड़वी सच्चाई है और इसका सामना करते हुए भूखे-प्यासे बेजुबान ठंड से थर-थर कांप रहे हैं। बोल कुछ सकते नहीं और समझने वाला कोई है नहीं। अंजाम बीमारी के बाद मौत तक पहुंचता है। लल्लूखेड़ा की गोशाला में गोवंशों का हाल देख दिल भर आता है। यहां चारा और पानी के अभाव में उनका शरीर सूख कर कांटा हो गया है। जख्मों से खून और आंखों से दर्द के आंसू बह रहे हैं। कई दिन भूखे रहने से गोवंश इतने कमजोर हो चुके हैं, कि वह ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे। लोगों की मारपीट और दुर्घटना आदि से घायल आधा दर्जन गोवंशों की मरहम-पट्टी और उपचार चल रहा है।
करें भी तो क्या?
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जिन हाथों में व्यवस्थाएं दी गई हैं, उन्हें खुद सरकार ने ही कमजोर कर रखा है। आश्रय स्थल की प्रमुखता बताते हुए इनका निर्माण करा लिया गया। कई जगह भुगतान ही नहीं हुआ तो कहीं चारे के लिए बजट नहीं दिया जा रहा। ऐसे में कौन किस खाते से व्यवस्थाएं जुटाए? अहमद नगर बमनोई के प्रधान बाबूराम वर्मा कहते हैं कि गो आश्रय स्थल बनवाने में 18 लाख से भी अधिक का खर्चा अपनी जेब से किया। भुगतान अभी तक नहीं हुआ है। रोजाना 70 रुपये प्रति गोवंश का खर्चा आता है। लेकिन सरकार सिर्फ 30 रुपये दे रही है। वह भी समय पर नहीं मिलता है। वहीं क्षमता से अधिक गोवंशों को संरक्षण दिया जा रहा है। हम लोग क्या-क्या करें?
वर्जन
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सभी आश्रय स्थलों पर टाट-बोरे के तिरपाल और पर्दों का बंदोबस्त कराया गया है। इसके अलावा पशुओं के बैठने के स्थान को गर्म रखने के लिए धान की पराली उपलब्ध कराई गई है।
- डॉ. केपी सिंह, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी