संस्कारों में हरियाली, हर घर आएगी खुशहाली
खास दिवसों पर पौधे लगाने को प्रेरित हो नई पीढ़ी पर्यावरण संरक्षण के संग यादगार बन सकेगा जीवन
जासं, एटा: बदलते दौर में संस्कारों का महत्व कई मायनों में है। बच्चों को भारतीय संस्कृति या फिर अभिवादन के अलावा अनुशासन सिखाना ही संस्कार नहीं है बल्कि उनके संस्कारों में पर्यावरण प्रेम तथा हरियाली के महत्व को भी शामिल करना होगा। नई पीढ़ी में हरियाली को लेकर संस्कार जाग गए तो हर और खुशहाली बनेगी।
मौजूदा समय के मध्य कई तरह के बदलाव लोगों के रहन-सहन और जीवन में देखे जा सकते हैं। घरों में किसी भी बच्चे का जन्म दिवस हो या फिर शादी की सालगिरह मनाने का जश्न अब स्टेटस बनता जा रहा है। इन खास मौकों पर कुछ घंटों की खुशियों के लिए हजारों रुपया खर्च कर दिया जाता है, लेकिन ऐसे अवसर पर कुछ पौधे रोपकर खुशियां मनाई जाए तो वह यादगार तो बनेगी वहीं नई पीढ़ी में भी पर्यावरण के प्रति प्रेम जग जाएगा। भले ही कुछ सालों में प्रबुद्धजन इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन जरूरत खास अवसरों को हरियाली के संग यादगार बनाने की है। खुशियों के अलावा पौधारोपण कर अपनों से बिछड़ने वालों की स्मृति संजोना भी पर्यावरण संरक्षण के लिए खास हो सकता है। यहां तक कि आप सामाजिक चेतना के तहत लोग तरह-तरह की मौका पर पौधों का तोहफा देने जैसी शुरुआत कर लोगों की मनोदशा बदल सकते हैं। आचार्य वागीश शास्त्री बताते हैं कि प्राचीन काल में पेड़ पौधे लगाना हो उनका संरक्षण करना भी संस्कारों में शामिल था। आज बच्चों में बुढ़ापे के समय मां-बाप के प्रति विकृति की भावना यूं ही नहीं। मां-बाप बच्चों को हरियाली से प्रेम सिखा देते तो उनका प्रेम स्वजनों के लिए भी कभी कम न होता। पौधे लगाकर मनाते हैं जन्मदिन:
जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के वरिष्ठ लिपिक अनूप दुबे पिछले 25 सालों से अपने हर जन्मदिवस पर पांच पौधे जरूर लगाते हैं। स्थान भी ऐसा चुनते हैं, जहां उन पौधों का खुद संरक्षण देखभाल कर सकें। घर या फिर खेल के मैदान और धार्मिक स्थलों पर पहले ही स्थान ढूंढ लेते हैं। अपने दोनों बेटों को भी यही संस्कार दिए और वह भी जन्म दिवस हरियाली लगाने के संग मनाते हैं। गुरुकुल परंपरा कायम कर रहे निर्वहन:
समाजसेवी मेधाव्रत शास्त्री खुद जन्मदिवस पर पौधे लगाते हैं। गुरुकुल परंपरा के संस्कार का खुद पालन करते हुए वह अपना जन्मदिन पौधे लगाकर युवा विद्यार्थियों के बीच इसीलिए मनाते हैं ताकि उनमें भी हरियाली के संस्कार पनप सकें। उनकी प्रेरणा से भी तमाम युवा हरियाली की राह पर आगे बढ़े हैं। कमल सिंह देते मुफ्त पौधे का तोहफा:
प्रकृति के लिए योगदान का खास फार्मूला नर्सरी संचालक कमल सिंह ने खोजा है। आठ साल पहले फोटोग्राफी करते थे, लेकिन इसके बाद नर्सरी अपने गांव नगला मंझा में शुरू कर दी। नई पीढ़ी को हरियाली से जोड़ने के लिए उन्होंने प्रशंसनीय पहल की है। चार सालों से वह नर्सरी पर अपने जन्मदिन या फिर शादी की सालगिरह पर पौधे लेने वाले को एक पौधा उपहार के रूप में देते हैं। मंशा यही है कि नई पीढ़ी का हरियाली से जुड़ा हुआ तो बेहतर परिणाम होंगे। आसपास के क्षेत्र में उनकी पहल औरों को भी प्रेरित करने वाली है।