बुखार से बालक की मौत, दर्जनभर लोगों में डेंगू की पुष्टि

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने शिविर लगाए बिल्सड़ सिरसा बदन जैसे गांवों में स्थिति अधिक खराब

By JagranEdited By: Publish:Thu, 07 Oct 2021 05:37 AM (IST) Updated:Thu, 07 Oct 2021 05:37 AM (IST)
बुखार से बालक की मौत, दर्जनभर लोगों में डेंगू की पुष्टि
बुखार से बालक की मौत, दर्जनभर लोगों में डेंगू की पुष्टि

जासं, एटा: बुखार से चार साल के बच्चे की मौत हो गई। सुबह के वक्त जब उसकी हालत बिगड़ी तो परिवार के लोग मेडिकल कालेज लाए। डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। इधर, दर्जनभर लोगों में एलाइजा टेस्ट के दौरान डेंगू की पुष्टि हुई है। इन लोगों को विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।

पीपल अड्डा निवासी शैलेंद्र के चार वर्षीय पुत्र शिवम को चार दिन से बुखार आ रहा था। उसे एक निजी क्लीनिक पर भर्ती कराया गया था। इस बीच बुधवार सुबह बच्चे की मौत हो गई। फिर भी परिवार के लोग बच्चे को मेडिकल कालेज लेकर आए। यहां भी डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने शिविर लगाए। बिल्सड़, सिरसा बदन जैसे गांवों में स्थिति अधिक खराब है। वहां भी टीमें पूरे दिन डेरा डाले रहीं। मरीजों की रैंडम चेकिग की गई। इस दौरान रैपिड टेस्ट किए गए। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति यह है कि एक-एक घर में दो-तीन लोग तक बीमार हैं। इन परिवारों के लोग खौफजदा हैं, जिसको जहां बेड मिल रहे हैं वहीं मरीजों को भर्ती कराया जा रहा है। मेडिकल कालेज की स्थिति यह है कि सारे बेड फुल चल रहे हैं, डिस्चार्ज होने वाले मरीजों की संख्या कम है, इसलिए बेड खाली नहीं हो पा रहे। सबसे ज्यादा परेशानी उन नए मरीजों को होती है जो मेडिकल कालेज में इलाज कराना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में जब उन्हें बेड नहीं मिलते तो निराश होकर लौट रहे हैं। सीएमओ डा. उमेश चंद्र त्रिपाठी ने बताया कि बुखार पीड़ितों की हरसंभव मदद की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग की टीमें तैनात हैं। प्रतिदिन रैपिड टेस्ट भी किए जा रहे हैं। ब्लड के लिए भटकते रहे तीमारदार

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डेंगू पीड़ित मरीज के ब्लड चढ़ाने के लिए तीमारदार दिनभर भटकते रहे। मेडिकल कालेज की एमसीएच विग में तैनात चिकित्सक बार-बार इमरजेंसी के डाक्टर से ब्लड चढ़ाने की कह रहे थे। इमरजेंसी के डाक्टर से लिखवाकर लाने की बात कही जा रही थी। तीमारदार जब इमरजेंसी में पहुंचे तो वहां जिम्मेदार डाक्टर ही नहीं थे। स्टाफ से काफी देर तक तीमारदारों की नोक-झोंक होती रही।

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