सांसों की डोर बुरे पौधों से हो जाती कमजोर

ज्यादातर हरियाली खास पर गाजर घास बनी फांस बिना रोपे बड़े पैमाने पर फैल रही पारथेनियम खेती तथा जनस्वास्थ्य के लिए घातक

By JagranEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 06:55 AM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 06:55 AM (IST)
सांसों की डोर बुरे पौधों से हो जाती कमजोर
सांसों की डोर बुरे पौधों से हो जाती कमजोर

जासं, एटा: वातावरण में आक्सीजन बढ़ाने के लिए जितने उपयोगी अच्छे पौधे हैं। दूसरी ओर जिले में गाजर घास जैसी बुरी वनस्पति एक समस्या है। गाजर घास खेतीबाड़ी के लिए समस्या है। वहीं जन स्वास्थ्य पर भी इसका विपरीत असर है। जरूरी है कि अच्छे पौधे लगाने के साथ इस वनस्पति के खात्मे के लिए भी प्रयास होने चाहिए।

हर चीज के दो पहलू हैं, जहां अनगिनत तरह के पौधे वातावरण और जनस्वास्थ के लिए लाभकारी हैं। वहीं कुछ ऐसे भी बुरे पौधे हैं, जो वातावरण के साथ-साथ खेतीबाड़ी और सेहत पर भी विपरीत असर डाल रहे हैं। जिले में बुरे पौधों के जंगल नहीं हैं, लेकिन मुख्य तौर पर गाजर घास के पौधे लगभग जिले के हर क्षेत्र में ही किसानों के साथ-साथ लोगों के लिए भी दुष्परिणाम को लेकर समस्या बनी हुई है।

वैसे तो जिले में अधिकांशत: हरी वनस्पति और पेड़-पौधे लाभकारी ही हैं। इसके बावजूद पिछले कई वर्षों से ऐसे पौधे लोगों की समस्या बने हुए थे, जिनके बारे में लोग भलीभांति जानते तक नहीं थे। करीब 15 साल पहले किसानों ने जब इन पौधों को कृषि विभाग व वन विभाग को दिखाया तो पड़ताल शुरू हुई। कृषि वैज्ञानिकों ने देखने में हरे और सफेद फूल वाले इन पौधों का अध्ययन किया तो मालूम हुआ कि यह पौधे पारथेनियम के हैं, जिसे गाजर घास भी कहा जाता है। बिना रोपे तेजी से फैलने वाली यह हरियाली देखने में सुंदर हो, लेकिन उनके घातक परिणाम खेती और जन स्वास्थ्य के लिए भी हैं। कृषि क्षेत्र में यह पौधे उग आते हैं, उनसे न सिर्फ कृषि पैदावार प्रभावित होती है, बल्कि पौधे पर आने वाले सफेद फूल के परागकण हवा के साथ बिखरते हुए लगातार अपना दायरा बढ़ाते रहते हैं। खेत की मेड़ व सड़क किनारे जहां, तहां ये पौधे देखे जा सकते हैं। आंशिक तौर पर देखा जाए तो जिले में यूकेलिप्टस तथा कौंच वनस्पति ही बुरे पौधों में शामिल है। गाजर घास की स्थिति लगातार जिले में बढ़ने के मध्य इसका दायरा अब 1100 हेक्टेयर से भी ज्यादा माना जा रहा है। लाभदायक विभिन्न प्रजातियां की भी भरमार:

जनपद में लाभदायक हरियाली की कोई कमी नहीं है। आम, अमरूद, नीम, आंवला, कटहल, बेर, सहजन, शीशम, बबूल, जामुन आदि की तमाम प्रजातियों के वृक्ष बड़ी संख्या में लोगों की आय का जरिया बने हैं।

- जिले में हरियाली आर्थिक समृद्धि व जनस्वास्थ्य के लिए और ज्यादा सहायक बन सकती है। यहां बुरे पौधे कुछ एक ही है। अन्यथा अमरूद, करी प्लांट, ओरंगा, नीम, आम आदि की बागवानी से अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। स्वास्थ्य की ²ष्टि से भी बेहतर हैं।

डा. एके सिंह, कृषि वैज्ञानिक

- स्थानीय किसान सिर्फ पुरानी प्रजातियों पर निर्भर हैं। अब तो सहजन, आंवला के अलावा अमरूद की ललित लालिमा, इलाहाबादी सफेदा आदि प्रजातियों को भी रोपकर साल भर आमदनी की जा सकती है। अच्छी हरियाली समृद्धि का आधार बन सकती है।

वीरेंद्र सिंह, उद्यान विशेषज्ञ

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