एंबुलेंस फर्जीवाड़ा : फर्जी काल के आधार पर बिलिग को बढ़ाते हैं

चालकों ने एडीएम के समक्ष खोली कंपनी की पोल वर्ष 2018 में भी सामने आया था फर्जीवाड़ा

By JagranEdited By: Publish:Fri, 30 Jul 2021 05:43 AM (IST) Updated:Fri, 30 Jul 2021 05:43 AM (IST)
एंबुलेंस फर्जीवाड़ा : फर्जी काल के आधार पर बिलिग को बढ़ाते हैं
एंबुलेंस फर्जीवाड़ा : फर्जी काल के आधार पर बिलिग को बढ़ाते हैं

जासं, एटा: एंबुलेंसकर्मियों ने 108 और 102 व एएलएस एंबुलेंस का प्रबंधन करने वाली कंपनी पर आरोप लगाए हैं। उनकी निष्पक्षता से जांच हो तो एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आ सकता है। एंबुलेंस चालकों ने एडीएम के समक्ष आरोप लगाए थे कि कंपनी फर्जीवाड़ा करा रही है। फर्जी काल कराकर रजिस्टरों में दर्ज की जा रही हैं, ताकि कंपनी के खाते में बिलिग अच्छी हो सके। कंपनी को एक केस पर 3700 रुपये मिलते हैं।

हड़ताल कर रहे एंबुलेंस चालकों ने अपर जिलाधिकारी प्रशासन विवेक मिश्र से मिलकर बुधवार को शिकायत की थी कि उनकी कंपनी जीवीके के अधिकारी एंबुलेंस चालकों पर फर्जी केस बनाने के लिए दबाव बनाते हैं। एडीएम ने उनसे पूछा कि आखिर फर्जीवाड़ा किस तरह होता है। चालकों ने बड़ी बेबाकी से एक-एक बात एडीएम को बताई, जिसे सुनकर वे भी दंग रह गए कि एक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता कंपनी किस तरह से सरकारी धन ऐंठ रही है। इस तरह होता फर्जीवाड़ा:

चालकों ने अपर जिलाधिकारी प्रशासन को बताया कि कंपनी के बड़े अधिकारी केस अधिक लाने के लिए कहते हैं। कहीं से भी किसी से भी कहकर कंट्रोल रूम के लिए काल करा दी जाती है। यह कंट्रोल रूम जिस क्षेत्र की एंबुलेंस है उसके चालक को फोन करता है कि फलां जगह से केस उठाना है। हर गाड़ी में जीपीएस सिस्टम लगा हुआ है, ऐसे में गाड़ी वहां तक जाती है और 10, 15 मिनट बाद वहां से अस्पताल में आकर खड़ी हो जाती है। इस तरह से रिकार्ड कंपनी के पास पहुंच जाते हैं, इनमें एक कालर का फोन नंबर और दूसरा कंट्रोल रूम द्वारा चालक को की गई काल, तीसरा जीपीएस सिस्टम में दर्ज आना-जाना। इसके अलावा कोई भी फर्जी नाम, पता जिला अस्पताल के रिकार्ड में चढ़ा दिया जाता है। इसके अलावा अगर कोई एंबुलेंस खराब खड़ी है तो उसका जीपीएस सिस्टम निकालकर दूसरे वाहन पर एक्टिव कर देते हैं जिससे लोकेशन कंपनी को पहुंच जाता है। चालकों ने एडीएम को बताया है कि मामले की बारीकी से जांच हो तो केसों का सत्यापन किया जाए कि जो नाम, पते रजिस्टर में दर्ज हैं वहां से 108 नंबर पर काल की गई या नहीं, क्या उस नाम के व्यक्ति कालर के दिए गए पते पर रहते हैं अथवा नहीं। इस पर एडीएम ने आश्वासन दिया कि मामले को उच्च अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाएगा। ये है नियम

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जब कोई केस अस्पताल में पहुंचता है तो वहां के पब्लिक केयर रिकार्ड (पीसीआर) में दर्ज होता है। ओपीडी का पर्चा बनवाने तक की जिम्मेदारी एंबुलेंसकर्मी की होती है। अस्पताल के पीसीआर रजिस्टर पर केंद्र के आकस्मिक चिकित्साधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं। स्वास्थ्य केंद्रों से हर महीने पूरा रिकार्ड मुख्य चिकित्साधिकारी के यहां भेजा जाता है। सीएमओ दफ्तर से यह रिकॉर्ड कंपनी को सौंप दिया जाता है। इसके बाद कंपनी को भुगतान किया जाता है। एंबुलेंस कर्मचारी संघ के जिलाध्यक्ष विवेक पाल ने बताया कि एक केस का 3700 रुपये भुगतान कंपनी को किया जाता है। वर्ष 2018 में जागरण ने किया था पर्दाफाश:

वर्ष 2018 में जागरण ने एंबुलेंस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया था। उस समय एंबुलेंस संचालन में फर्जीवाड़े की शिकायतें काफी समय से आ रही थीं। तमाम केस ऐसे निकले जिनका रिकार्ड अस्पतालों में जांच के दौरान नहीं पाया गया। शिकायतें जब एंबुलेंस कंपनी जीवीके के मुख्यालय लखनऊ तक पहुंचीं तब कार्रवाई हुई। उस समय 1120 केस का रिकार्ड जिला अस्पताल व विभिन्न पीएचसी और सीएचसी पर नहीं मिला था। गौर करने वाली बात यह है कि इन 1120 केस का भुगतान सरकार द्वारा कंपनी को कर दिया गया, लेकिन मामले की उच्चस्तरीय जांच नहीं की गई और स्थानीय स्तर पर जांच सिर्फ कुछ कर्मचारियों को निलंबित करने तक ही सीमित रही। कंपनी ने कर्मचारियों पर ही कार्रवाई की। उस समय अलीगढ़ मंडल में 14 कर्मचारी निलंबित किए गए थे, जिनमें दो एंबुलेंस चालक एटा के थे। ----------------

एंबुलेंस चालकों ने कंपनी के फर्जीवाड़े के बारे में शिकायत की है, मामले को उच्च अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाएगा ताकि मामले की बारीकी से जांच हो सके।

- विवेक मिश्र, एडीएम प्रशासन, एटा

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