वर्षा जल को सहेज रहा पोखरा, बुझ रही पशु-पक्षियों की प्यास
सलेमपुर विकास खंड क्षेत्र के ग्राम कम्हरिया में गांव में प्राथमिक विद्यालय के सामने बगीचे में पांच एकड़ के पोखरे में हमेशा वर्षा जल इकट्ठा रहता है।
देवरिया: भीषण गर्मी में जहां तालाब सूखे हुए हैं और पशु पक्षी समेत आमजन का गर्मी से हाल बेहाल है। नतीजा कि जलस्तर काफी कम हो गया है। आम लोग तो किसी तरह से अपने लिए पानी की व्यवस्था तो कर ले रहे हैं, लेकिन पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। ऐसे में क्षेत्र के कम्हरिया के पोखरे में वर्षा जल संचयन कर पशु-पक्षियों की जहां प्यास बुझ रही है। वहीं भूजल स्तर भी संतुलित हो रहा है।
सलेमपुर विकास खंड क्षेत्र के ग्राम कम्हरिया में गांव में प्राथमिक विद्यालय के सामने बगीचे में पांच एकड़ के पोखरे में हमेशा वर्षा जल इकट्ठा रहता है। चारा खाने निकले पशु सहित पेड़ों पर चहकते पक्षी जहां इसमें अपनी प्यास बुझाते हैं वहीं गर्मी से बेहाल ग्रामीण भीषण तपिश से निजात के लिए यहां पूरे दिन इकट्ठा रह ठंड का अहसास पाते हैं।
पोखरे के किनारे बनी छठ बेदियां राहगीरों को आकर्षित करती हैं। जल संचयन का असर यह है कि अगल-बगल के घरों में लगे हैंडपंप कभी सूखते नहीं। गांव के बृजेश पाल ने बताया कि यह पोखरा काफी पुराना है। इसका पानी सूखा नहीं है। हमेशा इसमें वर्षा का पानी जमा रहता है।
पर्यावरणविद् तारकेश्वर पांडेय ने बताया कि वर्षा जल का संग्रहण सभी क्षेत्रों के लोगों के लिए जरूरी है। सतह से बारिश के पानी को इकट्ठा करना बहुत ही असरदार और पारंपरिक तकनीक है। इससे छोटे तालाबों, भूमिगत टैंकों, बांध आदि के इस्तेमाल से जल संरक्षित किया जा सकता है। भूमिगत पुनर्भरण तकनीक जल संग्रहण का एक नया तरीका है।
तकनीकी विशेषज्ञ शुभेंद्र पांडेय ने बताया कि पेयजल की कमी एक संकट बनता जा रहा है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इसके लिये वर्षा का पानी जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन किया जाना आवश्यक है। ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाये। इसके लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिए।