पर्यावरण को बढ़ावा देने में ग्राम पंचायतों की भूमिका हो तय
पर्यावरण प्रहरियों ने जागरण से बातचीत में साझा किया विचार
देवरिया : धरती पर हरियाली से ही जीवन में खुशहाली आएगी। यह तभी संभव है जब लोग पेड़ों की अंधाधुंध कटाई न करें। ग्राम पंचायतों के सहयोग के बिना पौधारोपण अभियान को बढ़ावा देना मुश्किल है। यह कहना है पर्यावरण प्रहरियों का। पौधारोपण को बढ़ावा मिलने से ही पर्यावरण की सुरक्षा होगी। इसके लिए सरकार की तरफ से पहल की जा रही है, जिसमें सरकारी विभाग तो सक्रिय हैं लेकिन ग्राम पंचायतों की सक्रियता कम दिख रही है। हमारा जोर ग्राम पंचायतों पर होना चाहिए। यह तभी संभव है जब हम ग्राम प्रधानों को पौधारोपण के लिए प्रोत्साहित करें। गांवों में बंजर, नवीन परती, आबादी समेत कई ऐसी भूमि होती है जो ग्राम पंचायत के स्वामित्व की होती है। कई जगहों पर ग्राम सभा की भूमि पर अवैध कब्जा होता है। यदि प्रशासन के सहयोग से अवैध कब्जा खाली कराकर पौधारोपण किया जाए और इसकी सुरक्षा के लिए सफाईकर्मियों को जिम्मेदारी दी जाए तो अभियान को गति मिलेगी। सफाईकर्मियों को पौधों को पानी देने व देखभाल का जिम्मा भी मिलना चाहिए। हमें पर्यावरण को संरक्षण देने वाले पौधे रोपित करना चाहिए। जिसमें पीपल, नीम, बरगद, पाकड़ आदि को बढ़ावा देना चाहिए। आज महुआ के पेड़ बहुत कम बचे हैं। इसके अलावा अन्य फलदार पौधों को भी लगाना चाहिए। यूकेलिप्टस का पौधा रोपित करने से बचें।
-शमशाम मलिक,
पर्यावरण प्रहरी, जमुआ पौधारोपण को बढ़ावा देने के लिए हमें भूमि के स्वामित्व को निश्चित करना होगा। सार्वजनिक भूमि पर हम जब पौधारोपण करते हैं तो उसे बचाना बड़ी चुनौती होती है। उसका मालिक कौन होगा, यह तय नहीं होता है। इसलिए सुरक्षा नहीं हो पाती। यदि निजी भूमि पर पौधारोपण होता है तो जिस व्यक्ति की भूमि होती है वह पूरे तन-मन से उसकी देखभाल व सेवा करता है। पौधे को बचाने के लिए लगा रहता है। इसलिए पौधों को रोपण के साथ स्वामित्व तय करना जरूरी है। इसके लिए जिम्मेदारों को जवाबदेह बनाना होगा। इसके अलावा पेड़ों को काटने के लिए परमिट की व्यवस्था अच्छी नहीं है। यदि गांव का कोई किसान आवश्यकता होने पर कोई पेड़ काटता है तो पुलिस व वन विभाग के कर्मचारी उसके पास पहुंच जाते हैं और उससे रुपये वसूलते हैं। कानून के नाम पर धन उगाही करते हैं और उत्पीड़न भी। यह भी पौधारोपण अभियान में बाधक है। सरकार को इस पर रोक लगानी चाहिए।
-डा.यशवंत सिंह,
पर्यावरण प्रहरी,जंगल अकटहा,