गन्ने की खेती से किसानों का हो रहा मोहभंग

जिले में मात्र एक प्रतापपुर चीनी मिल चालू तीन साल से लगातार घटता जा रहा है गन्ने का क्षेत्रफल

By JagranEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 11:58 PM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 11:58 PM (IST)
गन्ने की खेती से किसानों का हो रहा मोहभंग
गन्ने की खेती से किसानों का हो रहा मोहभंग

जागरण संवाददाता, देवरिया :

चीनी उत्पादन में जिले की अपनी एक अलग पहचान रही है। कभी इसे चीनी का कटोरा कहा जाता था। किसानों की दुर्दशा पर हमेशा राजनीति होती रही। दुर्दशा से उबारा नहीं गया। इससे किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो गया है। तीन साल के आंकड़ों पर गौर करें तो जनपद में गन्ने के क्षेत्रफल में लगातार गिरावट होती जा रही है। गन्ना किसानों के लिए नकदी फसल है। सरकार का निर्देश है कि चीनी मिल पर गन्ना बेचने के बाद तत्काल भुगतान किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। चीनी मिल पर गन्ना देने के 10 महीने बाद भी किसानों को भुगतान नहीं मिल रहा है। गन्ना किसान हर दिन भुगतान के लिए चक्कर लगा रहे हैं। इससे किसानों का मनोबल टूटता जा रहा है। दिसंबर 2020 में जिले की एक मात्र चीनी मिल पर किसानों के 29 करोड़ 77 लाख रुपये बकाया है। गन्ना का भुगतान न होने से किसान गन्ना की खेती की बजाय अन्य फसलों पर ध्यान देने लगे हैं। जिसका नतीजा यह है कि 2019, 2020 व 2021 में गन्ना बोआई का क्षेत्रफल लगातार कम हो रहा है।

किसानों को गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। तीन वर्ष से गन्ने का क्षेत्रफल घट रहा है। क्षेत्रफल कम होने के पीछे बकाया भी वजह है। आनंद कुमार शुक्ला

जिला गन्ना अधिकारी

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वर्ष-------- बोआई 2019 ----12798 हेक्टेयर 2020 ----10420 हेक्टेयर 2021------- 8874 हेक्टेयर

- किसानों की सुनिए:

गौरीबाजार के विशुनपुरा के रहने वाले गन्ना किसान विदेश्वरी सिंह का कहना है कि मजदूर नहीं मिलने व समय से बकाए गन्ने का भुगतान नहीं करने से किसानों का मनोबल टूट रहा है। तरकुलवा विकास खंड के सकतुआ के किसान व्यास राय का कहना है कि पहले चीनी मिल पर गन्ना पहुंचाने के दो से तीन दिन के भीतर भुगतान हो जाता था, लेकिन अब आठ से दस महीने में भी भुगतान नहीं किया जा रहा है। तरकुलवा के अनिल तिवारी का कहना है कि सिस्टम अत्याधुनिक हो गया है। मोबाइल नंबर पर पर्ची आती है। एक सप्ताह का समय दिया जाता है। जिससे गन्ना गिराने की तैयारी नहीं हो पाती। सबसे अधिक दिक्कत भुगतान को लेकर है। यही बात कनकपुरा के उमेश मिश्रा भी कहते हैं।

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