अब नहीं सुनाई देते डाकिया डाक लाया के गीत..

जागरण संवाददाता चित्रकूट डाकिया डाक लाया..डाकिया.. गीत गुजरे जमाना की बात हो गई

By JagranEdited By: Publish:Fri, 08 Oct 2021 06:14 PM (IST) Updated:Fri, 08 Oct 2021 06:14 PM (IST)
अब नहीं सुनाई देते डाकिया डाक लाया के गीत..
अब नहीं सुनाई देते डाकिया डाक लाया के गीत..

जागरण संवाददाता, चित्रकूट : डाकिया डाक लाया..डाकिया.. गीत गुजरे जमाना की बात हो गई है। चिट्ठियों का भी क्या जमाना था। जब लोग कागज के टुकड़े के लिए डाकिया का इंतजार करते थे। यादों का पिटारा रूपी चिट्ठी जब हाथ आती थी पूरा परिवार खुशी में झूम उठता था लेकिन मोबाइल फोन और इंटरनेट के युग में चिट्ठियों गुम हो गई है। डाक घर में भी पोस्ट कार्ड और अंतर्देशीय पत्र ढूंढ़े नहीं मिलते हैं। वैसे चिट्ठी युग को याद दिलाने के लिए हर साल नौ अक्तूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है। पुरानी बाजार निवासी ओम प्रकाश केशरवानी चिट्ठी युग को याद करते हुए कहते हैं कि आज से बीस साल पहले चिट्ठी का बेसब्री का इंतजार रहता था। खास कर जब पत्नी मायके चली जाती थी। दूर रहते हुए प्रेम का अहसास चिट्टी ही कराती थी। आखिरी बार वर्ष 2020 में पत्नी का पत्र हाथ लगा था। वह मायके इटावा में थी। तब ले जाने लिए पत्र लिखा था। जुदाई के पलों बातें लिखी थी। अब तो रिश्तेदारों से एक फोन में बात जाती है। मानिकपुर के 90 वर्षीय राजधर मिश्रा कहते हैं कि उनके जमाने में डाक विभाग देश के अंदर ही नहीं, दूसरे देशों तक संदेश पहुंचाने का सबसे विश्वसनीय, सुगम और सबसे सस्ता साधन था। पत्र, पार्सल, निमंत्रण पत्र और मनीआर्डर आदि से डाक विभाग की घर-घर पहुंच थी। मौजूदा समय में डाक की जगह अब मोबाइल फोन ने ले लिया। अधिकांश संदेश और दिल की बात फोन से हो जाती है। जब खून से पत्र किसी को लिखना है तभी पोस्ट कार्ड आदि दिखते हैं।

कर्वी डाक घर के डाकपाल फूलचंद्र पटेल बताते हैं कि पोस्टकार्ड की डिमांड वर्षों से नहीं आई है। काफी समय से डाक घर में पोस्ट कार्ड हैं भी नहीं है।

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