खेतों को बंजर बना रही रात दिन उड़ती क्रशर की डस्ट

हेमराज कश्यप चित्रकूट पहाड़ों पर हो रही ब्लास्टिंग और क्रशर से उड़ने वाली धूल न सिर्फ

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 06:34 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 06:34 PM (IST)
खेतों को बंजर बना रही रात दिन उड़ती क्रशर की डस्ट
खेतों को बंजर बना रही रात दिन उड़ती क्रशर की डस्ट

हेमराज कश्यप, चित्रकूट : पहाड़ों पर हो रही ब्लास्टिंग और क्रशर से उड़ने वाली धूल न सिर्फ पर्यावरण के लिए घातक है बल्कि ये किसानों के लिए भी परेशानी का सबब बनी हुई है। किसानों के मानें तो क्रशर की डस्ट से खेती योग्य जमीन बंजर हो रही है। अकेले भरतकूप में ही करीब छह हजार हेक्टेअर से अधिक जमीन डस्ट के कारण खेती योग्य नहीं बची है। यदि किसान मजबूरी में फसल की बुआई कर भी देता है तो उसे लगत निकालना मुश्किल होता है। ऐसा भी नहीं इसको लेकर किसानों ने कोई पहल न की हो। कई बार अधिकारियों को शिकायती पत्र देकर समस्या से अवगत कराया, लेकिन उनकी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई।

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फसलों पर जम जाती डस्ट की पर्त

भरतकूप के गोड़ा, रौली कल्याणपुर, बजनी आदि पहाड़ों में संचालित 29 वैध और तमाम अवैध खदानों समेत संचालित क्रशर से उड़ने वाली डस्ट की मोटी परत खेतों जमा हो गई है। यदि फसल बोई जाती है तो उसमें डस्ट का इतना बुरा असर पड़ता है कि उत्पादन 50 फीसद के कम होता है। कृषि वैज्ञानिक डा. विनय सिंह बताते हैं कि पौधों की वृद्धि के लिए सूर्य का प्रकाश जरूरी है। पत्थरों की डस्ट पौधों को पत्तियों में जमा हो जाने से सूर्य का प्रकाश ठीक से नहीं मिलता है जिससे पौधों की वृद्धि के साथ फसल उत्पादन में प्रभाव पड़ता है। खनन इलाके की भूमि लगभग बंजर हो जाती हैं।

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किसान जमीन बेचने को मजबूर

ब्लास्टिग और क्रशर से उड़ने वाले डस्ट के परेशान किसानों ने कई बार प्रशासन से शिकायत कर चुके हैं शिकायतकर्ता भरतकूप निवासी राजकिशोर कहते हैं कि डस्ट से फैलने वाले प्रदूषण ने जन जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है। किसान अपनी जमीनों को बेचने को मजबूर हैं। कोई फसल आदि होती नहीं हैं। खनन माफिया ही मनमाफिक दाम पर उनकी जमीन खरीद रहे हैं।

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आंकड़े की नजर (हेक्टेयर में)

जिले में कुल कृषि भूमि - 1,00120 खनन क्षेत्र में कृषि भूमि - 6438

खनन पट्टे - 29

कुल क्रशर - 75

संचालित क्रशर - 20

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खनन क्षेत्र में रबी की फसल नहीं होती है। खरीफ में ज्वार व बाजरा आदि की खेती किसान करते हैं, लेकिन उत्पादन इतना कम होता है कि जिले के औसत उत्पादन में प्रभाव पड़ता है। जिले के उत्पादन से 50 प्रतिशत से भी काम पैदावार यहां होती है।

टीपी शाही - उप कृषि निदेशक

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