गृहस्थ आश्रम में व्यक्ति को हर कार्य करने की मिलती प्रेरणा
जागरण संवाददाता, बरहनी (चंदौली) : चिरईगांव में चतुर्मास यज्ञ के बाद प्रवचन हुआ। सुंदर राज महाराज ने
जागरण संवाददाता, बरहनी (चंदौली) : चिरईगांव में चतुर्मास यज्ञ के बाद प्रवचन हुआ। सुंदर राज महाराज ने कहा गृहस्थ आश्रम सबसे बड़ा आश्रम माना गया है। यहां व्यक्ति सभी प्रकार के कार्य करते हुए भगवान की भक्ति भी कर सकता है। जो व्यक्ति इस आश्रम में मोह माया के जंजाल में फंस जाता है उसका ईश्वर के भजन में मन नहीं लगता। पर जो व्यक्ति नियमों का पक्का होता है वह हर कार्य करते हुए भगवान की भक्ति भी पूरे मनोयोग से करता है। कहा व्यक्ति को इस आश्रम में मानवतावादी बनने की कोशिश करनी चाहिए। यह मोह माया का संसार है। भांति-भांति के लोग मिलते हैं। इसलिए व्यक्ति का हमेशा बुद्धि विवेक बना रहता है। इसमें अपने विवेक से भला, बुरा का ज्ञान होता है। गरीबों, जरूरतमंदों से मुलाकात होती है। इसी आश्रम में व्यक्ति की पहचान बनती है। जो व्यक्ति मानवतावादी नहीं बन पाते उन्हें एक समय में संसार से दुख तो मिलता ही है अपनों का भी साथ छूट जाता है। नरेंद्र सिंह, संतोष सिंह, हरवंश, प्रज्ञा सिंह, अल्का
गुप्ता, दुर्गा पांडेय, पिकी, शिवबच्चन सिंह, मृत्युंजय सिंह आदि मौजूद थे।