किसानों को खेतों में फसल अवशेष न जलाने के लिए किया प्रेरित
चंदौली क्षेत्र के फुटिया गांव में सोमवार को गोष्ठी का आयोजन किया गया।
जागरण संवाददाता, चंदौली : क्षेत्र के फुटिया गांव में सोमवार को गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने किसानों को खेतों में फसल अवशेष न जलाने के लिए जागरूक किया। इससे होने वाले नुकसान बताए। किसानों को फसल अवशेष को खेत में सड़ाकर जैविक खाद बनाने का सुझाव दिया।
केंद्र के प्रभारी डाक्टर एसपी सिंह ने कहा फसल अवशेष खेत में जलाने से काफी नुकसान होता है। एक टन पुआल जलाने से तीन किलोग्राम कणकीय पदार्थ, 60 किलोग्राम मोनो आक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाई आक्साइड, 199 किलोग्राम राख और दो किलोग्राम सल्फर डाई आक्साइस गैस निकलती है। कार्बन डाई आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड व कार्बन मोनो आक्साइड, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पर्यावरण और मानव जीवन के लिए खतरनाक है। ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन से वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) में वद्धि होगी। इससे गर्मी बढ़ेगी। वहीं जलवायु परिवर्तन की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है। अवशेषों को जलाने से मिट्टी में जीवांश कार्बन की सम्पूर्ण मात्रा, नाइट्रोजन 80 प्रतिशत, फास्फोरस 25, पोटास 21 और सल्फर की 50-60 प्रतिशत तक हानि होती है। इसके अतिरिक्त मिट्टी की ऊपरी परत पर मौजूद पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी के भौतिक, रसायनिक व जैविक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। शस्य वैज्ञानिक रितेश सिंह गंगवार ने किसानों को फसल अवशेष सड़ाने के लिए वेस्ट डी कंपोजर के इस्तेमाल का सुझाव दिया। बताया कि इससे 40 दिन में फसल अवशेष सड़कर मिट्टी में मिलने के बाद जैविक खाद बन जाएगा। डाक्टर अभय दीप गौतम ने किसानों को जीवामृत व घन जीवामृत बनाने और उपयोग की विधि बताई। उद्यान वैज्ञानिक डाक्टर दिनेश कुमार यादव, मौसम विज्ञानी कृष्णमुरारी पांडेय आदि मौजूद रहे।