लाखों की लागत से बने शवदाह गृह निष्प्रयोज्य, घाट पर हो रही अंत्येष्टि

नमामी गंगे योजना के तहत गंगा किनारे लाखों रुपये की लागत

By JagranEdited By: Publish:Sun, 16 May 2021 05:43 PM (IST) Updated:Sun, 16 May 2021 05:43 PM (IST)
लाखों की लागत से बने शवदाह गृह निष्प्रयोज्य, घाट पर हो रही अंत्येष्टि
लाखों की लागत से बने शवदाह गृह निष्प्रयोज्य, घाट पर हो रही अंत्येष्टि

जागरण संवाददाता, धानापुर (चंदौली) : नमामी गंगे योजना के तहत गंगा किनारे लाखों रुपये की लागत से बनाए गए शवदाह गृह की फिक्र पहले की गई होती तो शायद आज पानी में शव तैरते न दिखते। पवित्र गंगा का आचमन करने में भय न लगता। लेकिन लापरवाही ऐसी कि लोग इस पवित्र नदी से भी डरने लगे। गंगा को स्वच्छ रखने के लिए घाटों के आसपास बनाए गए शवदाह गृह निष्प्रयोज्य हैं। कहीं जाने के लिए रास्ता नहीं तो कहीं संसाधनों की कमी है। लोग भी इतने निष्ठुर व स्वार्थी कि निर्धारित स्थल पर शव जलाने के बजाय गंगा किनारे अंतिम संस्कार कर गंदगी फैला रहे हैं। जागरूकता व इच्छा शक्ति के अभाव में महात्वाकांक्षी योजना परवान नहीं चढ़ सकी। गंगा निर्मलीकरण अभियान पर भी सवाल उठ रहे हैं। गंगा घाटों पर शवों को जलाने के लिए पहले से स्थान चिह्नित है। शवदाह गृह तो बना दिए गए लेकिन ग्रामीणों को परंपरा बदलने के लिए प्रेरित नहीं किया गया। जिम्मेदारों ने भी शवदाह गृह बनवाने के साथ ही अपनी जिम्मेदारियों को वहीं खत्म कर लिया। जनप्रतिनिधियों ने भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। गंगा निर्मलीकरण की बातें सिर्फ उनके भाषणों तक ही सीमित रहीं। ऐसे में शासन की महात्वाकांक्षी योजना कारगर नहीं हो सकी। वहीं दशकों पहले से चली आ रही शवों को घाटों पर जलाने की परंपरा बदस्तूर जारी है। कोरोना काल में प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तो खतरा और बढ़ सकता है।

कवलपुरा शवदाह गृह पर

प्रकाश की व्यवस्था नहीं

कवलपुरा गंगा घाट पर चार साल पहले लगभग 14 लाख रुपये की लागत से बना शवदाह गृह शोपीस बना है। इन वर्षों में यहां एक भी शव का अंतिम संस्कार नहीं हुआ। आज भी गंगा किनारे ही लोग चिताएं जलाते हैं। गृह के पास शौचालय भी बनाया लेकिन वह भी जीर्णशीर्ण हो गया है। निर्माण की गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में हैं। शवदाह गृह पर प्रकाश की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में रात के वक्त यहां अंत्येष्टि नहीं हो सकती है।

नरौली शवदाह गृह तक

जाने को रास्ता नहीं

नरौली घाट पर पांच साल पूर्व लगभग 14 लाख की लागत से बने अंत्येष्टि स्थल का भी हाल बेहाल है। यहां जाने के लिए रास्ता नहीं है। शौचालय के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति की गई है। ग्रामीण बताते हैं कि पांच वर्षों में यहां अब तक एक भी चिता नहीं जली। अंत्येष्टि स्थल पर प्रकाश की व्यवस्था नहीं है। वहीं अन्य कई तरह की असुविधाओं के चलते लोग नहीं जाते हैं।

पंच गंगापुर घाट पर बने अंत्येष्टि स्थल पर कोई अन्य नहीं जाता, बल्कि पीपा पुल की देखरेख करने वाले कर्मचारी इसके मालिक बन बैठे हैं। यहां आराम फरमाते हैं। वहीं शौचालय में भी ताला बंद कर दिया है। इसका इस्तेमाल सिर्फ कर्मचारी ही करते हैं। दु‌र्व्यवस्थाओं के चलते लोग शवों की अंत्येष्टि गंगा किनारे घाटों पर ही करते हैं।

रामपुर दिया गांव के

शवदाह गृह अधूरा

रामपुर दिया गांव में चार साल पहले शवदाह गृह बनाया गया। यहां शौचालय का दरवाजा टूटा है। इसके अलावा शवदाह गृह में अन्य संसाधन भी उपलब्ध नहीं। इसलिए लोग शवों की अंत्येष्टि करने यहां नहीं जाते। गंगा किनारे ही शवों का अंतिम संस्कार करते हैं। यहां न प्लेटफार्म बना है और न अन्य संसाधन हैं।

वर्जन

गंगा में शवों के मिलने के बाद प्रशासन अलर्ट हो गया है। लोगों को प्रेरित किया जा रहा कि शवों का नदी में प्रवाह करने की बजाए शवदाह गृहों में अंत्येष्टि करें। गंगा किनारे न करके घाट पर बने अंत्येष्टि स्थल पर ही अंतिम संस्कार करें।

प्रेमप्रकाश मीणा, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट

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