कोरोना ने लिया भयावह रूप तो लौटना पड़ा घर
जागरण संवाददाता सैयदराजा (चंदौली) मुंबई के कुर्ला इलाके में पंद्रह साल से कपड़ा मिल में
जागरण संवाददाता, सैयदराजा (चंदौली) : मुंबई के कुर्ला इलाके में पंद्रह साल से कपड़ा मिल में काम करने वाले सैयदराजा के नौबतपुर निवासी अखिलेश पांडेय को कोरोना की वजह से बसी-बसाई गृहस्थी छोड़कर घर लौटना पड़ा। वापस आने के लिए ट्रेन का टिकट नहीं मिल पा रहा था। संक्रमण के भय से वह व कैमूर निवासी राजेश कुमार एक सप्ताह तक कमरे में कैद रहे। कई दिनों की कोशिश के बाद किसी तरह टिकट की व्यवस्था हुई। दलाल ने वाराणसी तक की टिकट के एवज में 1500 रुपये अतिरिक्त लिए। स्टेशन पहुंचे तो भीड़ देखकर घबराहट होने लगी। हालांकि मुंबई में कोरोना का घातक रूप देखकर 15 साल से मुंबई में बसी-बसाई गृहस्थी छोड़कर वापस आना पड़ा। दैनिक जागरण के साथ बातचीत में उन्होंने पीड़ा बयां की। बोले, कोरोना की वजह से कामगारों को काफी नुकसान हुआ। उनकी नौकरी, गृहस्थी सब कुछ बर्बाद हो गई। यदि स्थानीय स्तर पर रोजगार के साधन विकसित किए जाएं, तो लोगों को ऐसी परेशानी नहीं झेलनी होगी। सरकारों को इस दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए।
अपने शहर में काम मिल जाता तो नहीं जाते नोएडा
हैदराबाद में एक डिग्री कालेज में बाबू की नौकरी छोड़कर आए किशन कुमार ने कहा कोरोना के चलते वहां भयावह मंजर है। कालेज बंद चल रहा किराए पर कमरा लेकर दिल्ली के मंगोलपुरी निवासी सुरेश राणा के साथ रहता था। चारों ओर सन्नाटा था, एक सप्ताह बाद दिल्ली का टिकट मिला वहां से वाराणसी होते हुए अपने नौबतपुर घर पहुंचा। रास्ते में दस रुपये का मिलने वाला पूड़ी सब्जी का नाश्ता पचास रुपये में मिला। घर आकर सुकून है लेकिन अब रोजी रोटी की चिता है। कोरोना की पहली लहर में घर में बेरोजगार बैठे रामविलास अगस्त में नोएडा चले गए। दीपावली और होली पर भी घर नहीं लौटे थे लेकिन कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ तो जान बचाने के लिए भागना पड़ा। कहते हैं, अपने ही गांव या शहर में काम मिल जाता तो शहर क्यों जाते। गा•िायाबाद में धागे के एक कंपनी में काम करने वाले सैयदराजा के प्रवीण व नूरहसन ने बताया कि ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन जाते समय दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने रास्ते में रोका। वापस नहीं जाने को कहा लेकिन बाजार-दुकान बंद थे। कमाई का जरिया नहीं था। खाते क्या, लिहाजा लौट गए।