रावण के जरिए जल रहा सांप्रदायिक सौहार्द का दीपक
दानपुर में जहां समाज के चंद ठेकेदार शांति की फिजा में जहर घोलकर दिल की दूरियां बढ़ा रहे हैं वहीं नगर निवासी अशफाक खां हिदू त्योहारों की शोभा में चार चांद लगाकर सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल कायम कर रहे हैं। नगर निवासी अशफाक खां की उम्र लगभग 65 वर्ष है।
बुलंदशहर, जेएनएन। दानपुर में जहां समाज के चंद ठेकेदार शांति की फिजा में जहर घोलकर दिल की दूरियां बढ़ा रहे हैं, वहीं नगर निवासी अशफाक खां हिदू त्योहारों की शोभा में चार चांद लगाकर सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल कायम कर रहे हैं। नगर निवासी अशफाक खां की उम्र लगभग 65 वर्ष है। वह छोटी उम्र से ही कारीगरी के लिए जाने जाते हैं। बचपन से ही उन्हें कलाकृति का शौक था। बाद में उनका यही शौक रोटी रोजी में तब्दील हो गया। अशफाक खां आज इसी शौक के दम पर बड़े बड़े शहरों में अपनी कलाकृति के फन का लोहा मनवा रहे हैं। उनका हाथ लगते ही पुतलों में जान सी आ जाती है। वह नगर के अलावा नागपुर, अहमदाबाद, कानपुर, आगरा, कोसी, रोहणी में पुतले तैयार कर चुके हैं। रामलीला मंचन के समय दूर दराज से लोग पुतले बनवाने के लिए अशफाक खां के पास पहुंचते हैं।
एक पुतले को बनाने में लगता है एक सप्ताह
- अशफाक खां बताते हैं कि पुतले को बनाने में बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है। कागज को कई बार पानी में भिगोना पड़ता हैं। इसके बाद मिट्टी के ढेर पर पुतले की कलाकृति बनाकर कच्चा कागज चढ़ाया जाता है। इस कागज के सूख जाने पर पुतले को रंग बिरंगे कागजों से अंतिम रूप दिया जाता है।
1200 रुपये फुट की आती है लागत
- अशफाक खां बताते हैं कि पुतले बनाने में लगभग 1200 रुपये फुट की लागत आती है। अधिकांश पुतलों की लंबाई से 60 से 75 फुट होती हैं। लंबाई के हिसाब से ही पुतलों की धनराशि तय होती है।