गोलियों की बौछार भी कम नहीं कर पायी देशभक्ति का जज्बा
जेएनएन बुलंदशहर देशभक्ति का जज्बा दिल में लेकर कारगिल युद्ध में दुश्मनों की गोलियां लगने के बाद भी अपना पराक्रम दिखाकर वीर योद्धा योगेंद्र यादव ने विजय पताका फहराई।
जेएनएन, बुलंदशहर: देशभक्ति का जज्बा दिल में लेकर कारगिल युद्ध में दुश्मनों की गोलियां लगने के बाद भी अपना पराक्रम दिखाकर वीर योद्धा योगेंद्र यादव ने विजय पताका फहराई। कारगिल युद्ध में पाक सैनिकों को मौत के घाट उतारने वाले इस वीर योद्धा को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र विजेता के सम्मान से भी नवाजा गया।
गुलावठी ब्लाक के गांव औरंगाबाद अहीर निवासी योगेंद्र यादव कारगिल युद्ध के हीरो रहे है। जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की आयु में 16 गोलियां लगने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। अपने अदम्य साहस के बल पर पाकिस्तानी घुसपैठियों के छक्के छुड़ा दिए। योगेंद्र यादव की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सेना की रही है। उनके पिता रामकरन यादव भी भूतपूर्व सैनिक थे जो कुमायूं रेजिमेंट से जुड़े हुए थे। योगेंद्र यादव का कारगिल युद्ध में बड़ा योगदान रहा। उनकी कमांडो प्लाटून घटक कहलाती थी। जिसके पास टाइगर हिल पर कब्जा करने के क्रम में लक्ष्य यह था कि वह ऊपरी चोटी पर बने दुश्मन के तीन बंकर काबू करके अपने कब्जे में ले। इस काम को अंजाम देने के लिए 16500 फीट ऊंची बर्फ से ढकी सीधी चढ़ाई वाली चोटी पार करना जरूरी था। इस बहादुरी व जोखिम भरे काम को करने का जिम्मा योगेंद्र ने स्वेच्छापूर्वक लिया। दुश्मन की गोलीबारी जारी थी।अपनी जान की परवाह किए बिना योगेंद्र लगातार अपने मिशन की ओर बढ़ रहे थे। तभी एक गोली उनके कंधे पर और दो गोलियां जांघ व पेट के पास लगी लेकिन वह रूके नहीं ओर बढ़ते रहे। दुश्मन के बंकर की ओर रेंगकर गए और एक ग्रेनेड फेंक उनके चार सैनिकों को वही ढेर कर दिया। अपने घाव की परवाह किए बिना दूसरे बंकर की ओर रूख कर वहां भी ग्रेनेड फेंक दिया। टाइगर हिल विजय पताका फहराते हुए सेना का सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र हासिल किया।
कारगिल युद्ध में कुरली के ऋषिपाल ने दी शहादत
गुलावठी: कारगिल युद्ध में गांव कुरली निवासी सैनिक ऋषिपाल डागर की शहादत को नहीं भुलाया जा सकता। उन्होंने युद्ध में पाक सैनिकों को खदेड़ अपनी वीरता का परिचय दिया। मातृभूमि की रक्षा के लिए ऋषिपाल शहीद हो गए। स्वजनों व ग्रामीणों को उनकी शहादत पर आज भी गर्व है।