पितरों को श्रद्धाभाव से याद करने का पर्व है श्राद्धपक्ष

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (सोमवार) से श्राद्ध प्रारंभ होते है। जो सोलह दिन तक चलते है। जो छह अक्टूबर को समाप्त होंगे। श्राद्ध पक्ष को पितपक्ष के नाम से भी जाना जाता है। श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है जिसका अर्थ पितरों के प्रति श्रद्धाभाव से है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 11:10 PM (IST) Updated:Sun, 19 Sep 2021 11:10 PM (IST)
पितरों को श्रद्धाभाव से याद करने का पर्व है श्राद्धपक्ष
पितरों को श्रद्धाभाव से याद करने का पर्व है श्राद्धपक्ष

जेएनएन, बिजनौर: भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (सोमवार) से श्राद्ध प्रारंभ होते है। जो सोलह दिन तक चलते है। जो छह अक्टूबर को समाप्त होंगे। श्राद्ध पक्ष को पितपक्ष के नाम से भी जाना जाता है। श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका अर्थ पितरों के प्रति श्रद्धाभाव से है।

धार्मिक संस्थान विष्णुलोक के ज्योतिषविद पंडित ललित शर्मा बताते है कि पितृपक्ष यानि श्राद्धपक्ष को लेकर अधिकांश लोगों में भ्रम बना हुआ है, कि यह समय अशुभ होता है। श्राद्धपक्ष में कोई भी नई वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए। परंतु किसी भी ग्रंथ में इस बात का उल्खेख नहीं है। पुराणों और ग्रंथों में सिर्फ पितरों के लिए श्राद्ध की बात कही गई है। ग्रंथों के अनुसार पूरे वर्ष खरीदारी की जा सकती है। जिसके लिए मुहूर्त भी दिए गये है। सिर्फ मृत्यु सूतक में ही शुभ कर्मों के लिए कोई वस्तु नहीं खरीदी जा सकती। कुछ लोगों का मानना है कि श्राद्ध पक्ष में घर,गाड़ी, नये कपड़े, जमीन, सोना-चांदी की खरीदारी से दोष लगता है। या पितृ नाराज हो जाएंगे। नई वस्तुएं खरीदने से पितृ खुश होते है। नाराज नही। उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। पितृ पक्ष में आपराधिक, अमानवीय और हर तरह गलत कामों में बचना चाहिए। अन्यथा पितृ नाराज होते हैं। पितृ पक्ष में केवल विवाह, उपनयन संस्कार, नींव पूजन, मुण्डन, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य करना अशुभ माना जाता है। श्राद्ध पक्ष को अशुभ मानने की कोई वजह नहीं है, क्योंकि इससे पहले भगवान गणेश की पूज अर्चना होती है और बाद में नवरात्र आते है।

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