दाह संस्कार के बाद घाट पर डाली जा रही पीपीई किट

कोरोना से पीड़ित लोगों की मौत होने पर शवों के दाह संस्कार के लिए बालावाली और नांगल गंगा घाट पर जाने वाले लोग केवल अपनी सुरक्षा पर ही ध्यान दे रहे हैं। दाह संस्कार के बाद पीपीई किट गंगा घाट पर ही खुले में फेंककर लौट रहे हैं। गंगा घाट के आसपास कई किसान खेती करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 06:38 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 06:38 PM (IST)
दाह संस्कार के बाद घाट पर डाली जा रही पीपीई किट
दाह संस्कार के बाद घाट पर डाली जा रही पीपीई किट

बिजनौर, जेएनएन। कोरोना से पीड़ित लोगों की मौत होने पर शवों के दाह संस्कार के लिए बालावाली और नांगल गंगा घाट पर जाने वाले लोग केवल अपनी सुरक्षा पर ही ध्यान दे रहे हैं। दाह संस्कार के बाद पीपीई किट गंगा घाट पर ही खुले में फेंककर लौट रहे हैं। गंगा घाट के आसपास कई किसान खेती करते हैं। यहां तक कि बड़ी संख्या में पलेज लगाते हैं और काफी समय खेतों पर ही रहते हैं। घाटों पर दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों की गैरजिम्मेदारी और अज्ञानता किसानों में कभी भी संक्रमण फैलने का कारण बन सकती है। प्रशासन का भी इस ओर कोई ध्यान नहीं है।

बालावाली एवं नांगल गंगा घाट पर अनगिनत परिवार पलेज की खेती कर रहे हैं। गंगा घाट पर दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों द्वारा पीपीई किट छोड़ जाने से आसपास किसानों में संक्रमण की आशंका जताई जा रही है। घाटों पर पीपीई किट, मास्क आदि खुले में पड़े होने से खतरे से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। अनिरुद्ध, प्रदीप कुमार, अनिकेत आदि लोगों का कहना है कि इन पीपीई कीटों को गड्ढा खोदकर दबाया जाना चाहिए। इसके लिए प्रशासन को भी कड़े कदम उठाने चाहिए।

-इनका कहना है

कोरोना पीड़ित के शव का दाह संस्कार करने जाने वालों की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे पीपीई किट को दबाकर या जलाकर ही लौटें। लेकिन फिलहाल इससे इतना बड़ा खतरा नहीं है। खतरा वहां है जब घाट पर संस्कार के लिए पहुंचने वाले लोग बगैर मास्क हों और एक दूसरे से नजदीकी बनाकर रखते हों। बात करने के दौरान ड्रापलेट से संक्रमण तेजी से फैलता है।

-डा.संदीप अग्रवाल, वरिष्ठ चिकित्सक नजीबाबाद

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