सांसारिक वस्तुओं के प्रति ममत्व का भाव नहीं रखना उत्तम आकिचन धर्म
दशलक्षण पर्व पर श्रद्धालुओं ने श्रीजी का अभिषेक कर भगवान महावीर आदिनाथ तीर्थंकर की वेदियों के समक्ष नतमस्तक होकर पूजा-अर्चना की। श्रद्धालुओं ने जिनवाणी पाठ कर उत्तम आकिचन धर्म का पालन करने का संकल्प लिया।
जेएनएन, बिजनौर। दशलक्षण पर्व पर श्रद्धालुओं ने श्रीजी का अभिषेक कर भगवान महावीर, आदिनाथ तीर्थंकर की वेदियों के समक्ष नतमस्तक होकर पूजा-अर्चना की। श्रद्धालुओं ने जिनवाणी पाठ कर उत्तम आकिचन धर्म का पालन करने का संकल्प लिया। श्री दिगंबर जैन पंचायती व सरजायती मंदिर में श्रद्धालुओं ने श्रीजी का सामूहिक अभिषेक किया गया। धर्म चर्चा करते हुए दीपक जैन ने कहा कि अपनी आत्मा का छोड़कर संसार की समस्त वस्तुओं के प्रति ममत्व का भाव नहीं रखना ही उत्तम आकिचन धर्म है। नमन जैन कहा कि इस संसार में परिग्रह रूप पिशाच ने सर्वादिक प्राणी मात्र का दुख दिया है। जो परिग्रह को तजता है वहीं सिद्ध शिला में वास करता है। अनुभव जैन कहा कि हमें संसार में रहकर चितन करना चाहिए कि पृथ्वी का एक अणु भी हमारा नहीं है। मैं आकिचन हूं। सामूहिक रूप से पूजन में पारसनाथ जैन, नमन जैन, राजीव जैन, दीपक जैन, अजय जैन, जितेन्द्र जैन, राहुल जैन, पुनीत जैन, अनुभव जैन, आदि ने भाग लिया। जबकि समला जैन, संध्या जैन, रैना जैन, अलका जैन, पूनम जैन, सुनीता जैन, सरोज कुमारी जैन, अवधेश जैन, सुषमा जैन, संतोष कुमार जैन, अरनव जैन, सुशीला जैन, नीरज जैन सहित कई श्रद्धालुओं ने भाग लिया। श्रद्धालुओं ने कहा
दशलक्षण पर्व हमें जीवन की राह पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। आकिचन का पालन करने से सांसारिक वस्तुओं का मोह नहीं रहता है।
-नीशु जैन दशलक्षण पर्व तन, मन के साथ आत्मा का शुद्ध करने का पर्व है। प्रतिदिन श्रीजी के दर्शन और पूजन से सुख, शांति व समृद्धि की वृद्धि होती है।
-छवि जैन