मेरी जिदगी थी तेरे साथ कट गई..

गीत गजल संगम एकेडमी ने ईरान से लौटे वरिष्ठ शायर महेंद्र अश्क के सम्मान में मुशायरा आयोजित किया। शायरों ने उम्दा कलाम पेश करने के साथ साथ महेंद्र अश्क को सम्मानित भी किया।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 05:34 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 05:34 PM (IST)
मेरी जिदगी थी तेरे साथ कट गई..
मेरी जिदगी थी तेरे साथ कट गई..

बिजनौर, जेएनएन। गीत गजल संगम एकेडमी ने ईरान से लौटे वरिष्ठ शायर महेंद्र अश्क के सम्मान में मुशायरा आयोजित किया। शायरों ने उम्दा कलाम पेश करने के साथ साथ महेंद्र अश्क को सम्मानित भी किया।

मोहल्ला मुगलूशाह में आयोजित मुशायरे के मुख्य अतिथि हाजी नौशाद अख्तर ने कहा कि मुशायरों से उर्दू तहजीब जिदा होती है। महेंद्र अश्क ने ईरान में आयोजित मुशायरे में हिदुस्तान का प्रतिनिधित्व कर नजीबाबाद का नाम रोशन किया है। यह हमारे लिए फº की बात है। विशिष्ट अतिथि नसीम आलम एडवोकेट ने उर्दू अदब की खिदमत के लिए हर वक्त तैयार रहने का आह्वान किया। अतिथियों ने महेंद्र अश्क को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया।

शनावर किरतपुरी की अध्यक्षता और कारी शाकिर रिजवी के संचालन में आयोजित मुशायरे का आगाज डा. इलियास अंसारी एवं मोहम्मद नासिर ने नाते पाक से किया। महेंद्र अश्क ने मेरी जिदगी थी तेरे साथ कट गई, ये किसकी जिदगी जी रहा हूं मैं, शनावर किरतपुरी ने आजमाते रहो हर हाल में बाजू अपने, जंग रखी हुई तलवार पर लग जाता है, डा. आफताब नोमानी ने याद करके सलूक अपनों के, अपने साए से डर रहा था मैं, अख्तर मुल्तानी ने मुझे शोहरतें मिली हैं-है करम मेरे खुदा का, मुझे जानता नहीं था कोई शायरी से पहले.. कलाम पेश कर वाहवाही लूटी।

कुमार मोनू रुबा ने फूल सूख जाते हैं गुलदान टूट जाता है, जब मोहब्बत में कोई इंसान टूट जाता है, डा.इलियास अंसारी ने कभी मां भूखे बच्चे को यूं ही लोरी सुनाती है, मेरा बालक बहल जाए शायद नींद आ जाए, उबैद अहमद ने चार कंधों पे जाना पड़ता है, मौत तो जिदगी से भारी है, अशरफ शेरकोटी ने इतनी जहमत तो हर हाल में उठा ली जाए, उर्दू तहजीब है तहजीब बचा ली जाए, आसिफ अंदाज ने मुझे तकते हैं सब दीवारों दर अच्छा नहीं लगता, मेरी मां घर नहीं होती तो घर अच्छा नहीं लगता.. कलाम से भावविभोर किया। इस मौके पर सुहैल शहाब, अकरम सिद्दीकी, सैयद अहमद कारी शुएब, अब्दुल हई सबा, वली अंजुम, ताबिश नजीबाबादी, जुबेर मुल्तानी, शाहिद अंजुम, मुकीम अहमद हाफिज शादाब आदि ने भी कलाम पेश किए।

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