पेंशन के सहारे बसर कर रहा शहीद अशोक का परिवार

कारगिल युद्ध को 22 वर्ष गुजर गए हैं। इसी कारगिल युद्ध में चांदपुर क्षेत्र के गांव फीना निवासी अशोक कुमार अपना शौर्य और पराक्रम दिखाते हुए शहीद हो गए। उनकी शहादत को आज भी याद किया जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 10:36 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 10:36 PM (IST)
पेंशन के सहारे बसर कर रहा शहीद अशोक का परिवार
पेंशन के सहारे बसर कर रहा शहीद अशोक का परिवार

बिजनौर, जेएनएन। कारगिल युद्ध को 22 वर्ष गुजर गए हैं। इसी कारगिल युद्ध में चांदपुर क्षेत्र के गांव फीना निवासी अशोक कुमार अपना शौर्य और पराक्रम दिखाते हुए शहीद हो गए। उनकी शहादत को आज भी याद किया जाता है। आज यानि 26 जुलाई को वीर जवानों की स्मृति में विजय दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन अफसोस शहीद अशोक कुमार का परिवार गुमनामी में जी रहा है। शहादत के बाद उनके परिवार को तमाम योजनाओं का लाभ देने के वायदे हुए, लेकिन आज उनका परिवार मात्र पेंशन के सहारे की गुजर बसर कर रहा है। परिवार जिन परिस्थितियों में है, उनके सामने विजय दिवस के मायने ही बदल जाते हैं।

फीना गांव के नायक अशोक कुमार गोरखा रेजिमेंट की एचक्यू कंपनी की चौथी बटालियन में शामिल थे। कारगिल युद्ध शुरू हो चुका था और 11 जुलाई सन 1999 को उनकी बटालियन को एक चोटी विजय करने का लक्ष्य दिया गया। अशोक कुमार देश की रक्षा की खातिर आगे बढ़ते गए। इस दौरान दुश्मनों की गोलियों की बौछार हो रही थी। वह बिना डरे उनसे मुकाबला करने लगे। मगर अफसोस वह दुश्मन सेना की गोलियां खाकर देश के लिए कुर्बान हो गए। बावजूद इसके उनकी बटालियन ने वह चोटी फतेह की। शहादत के बाद तिरंगे में लिपटा उनका शव गांव पहुंचा तो क्षेत्र खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। एक तरफ जहां उनकी चिता जल रही थी तो दूसरी तत्कालीन सरकारी हुक्मरानों ने उनके नाम पर डिग्री कालेज, बिजलीघर, गैस एजेंसी व पेट्रोल पंप आदि बनवाने की घोषणाएं की, लेकिन वह समय के साथ सब गुजरे जमाने की बात हो गई। शहीद अशोक का परिवार गुमनामी में जीने को मजबूर है। हाल ही में शहीद के पिता लक्ष्मण सिंह का भी निधन हो गया है। परिवार में उनकी मां व पुत्र नितिन है। सरकार की ओर से अब उन्हें एक मात्र सहारा पेंशन का है। जिसके सहारे उनका परिवार चल रहा है। मन में रह-रहकर उठती है टीस

शहीद अशोक की शहादत को 22 वर्ष बीत चुके हैं। शहीद के परिवार आज भी सरकारी सुविधाएं मिलने की आस में है। उपेक्षा से शिकार शहीद का बेटा सेना में जाने से इंकार कर चुका है, लेकिन अब परिस्थितियों को देख वह फौज में जाना चाहता है। हालांकि, अभी सेना की ओर से कोई ठोस जबाव नहीं मिल रहा है। स्मारक बदहाल, घर के पास पसरी गंदगी

गांव के बाहर शहीद के नाम से स्मारक भी बनवाया गया। उस दौरान काफी कुछ हुआ, लेकिन समय के साथ यहां झाड़ियां उग गईं और स्थिति बदहाल हो चुकी हैं। तारबाड़ तक गायब हैं। वहीं, शहीद के बेटे का आरोप है कि उनके घर के आसपास गंदगी के ढेर लगे रहते हैं, लेकिन प्रधान से लेकर अधिकारी तक इस पर ध्यान नहीं देते। जबकि कई बार शिकायत भी की जा चुकी है। उनका कहना है कि शासन और प्रशासन उनकी बदहाली पर ध्यान दे।

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