अखंड राष्ट्र बनाए रखने को संगठित रहना जरूरी

एकता और अखंडता शब्द भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित है। एकता एक मनोवैज्ञानिक विचार है जो नागरिकों के बीच एक होने की भावना पर बल देता है। अखंडता एक भौगोलिक विचार है जो भारत के प्रत्येक क्षेत्रीय भूभाग को अपने में समाहित किए हुए हैं। यह तो स्पष्ट है कि बिना एकता के अखंडता संभव नहीं है। अखंड राष्ट्र बनाएं रखने के लिए जरूरी है कि हम संगठित रहें।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 30 Sep 2021 05:19 AM (IST) Updated:Thu, 30 Sep 2021 05:19 AM (IST)
अखंड राष्ट्र बनाए रखने को संगठित रहना जरूरी
अखंड राष्ट्र बनाए रखने को संगठित रहना जरूरी

जेएनएन, बिजनौर। एकता और अखंडता शब्द भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित है। एकता एक मनोवैज्ञानिक विचार है, जो नागरिकों के बीच एक होने की भावना पर बल देता है। अखंडता एक भौगोलिक विचार है जो भारत के प्रत्येक क्षेत्रीय भूभाग को अपने में समाहित किए हुए हैं। यह तो स्पष्ट है कि बिना एकता के अखंडता संभव नहीं है। अखंड राष्ट्र बनाएं रखने के लिए जरूरी है कि हम संगठित रहें।

नागरिकों का समूह ही बंधुता है और यह बंधुता अगर संपूर्ण भारत में हो, तो इसी को एकता कहते हैं। यदि एकता बनी रहे, तो भारत की अखंडता बनी रहेगी। राष्ट्रीय एकता एक भावना है, जो किसी राष्ट्र अथवा राष्ट्र के लोगों में भाईचारा, राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं अपनत्व की भावना को प्रदर्शित करती है। राष्ट्रीय एकता का मतलब ही होता है कि राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक क्षमता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक, बौद्धिक, वैचारिक और भावनात्मक निकटता की समानता आवश्यक है। भारत देश को गुलामी, सांप्रदायिक झगड़ों, दंगों से बचाने के लिए देश में राष्ट्र एकता का होना अति आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता देश के लिए कितनी आवश्यक है यह हमें अंग्रेजों की वर्षो की गुलामी से समझ में आ जाना चाहिए। हम जब जब असंगठित हुए हैं। हमें आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से इसकी कीमत चुकानी पड़ी। हमारे विचारों में जब-जब संकीर्णता आई, आपस में झगड़े हुए। हमने जब कभी नए विचारों से अपना मुख मोड़ा, हमें हानि ही हुई। हम विदेशी शासन के अधीन हो गए। यह बातें स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय एकता सम्मेलन के दौरान कही थी। दुश्मन भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, यदि राष्ट्रीय एकता को हम अपना आधार बनाएं। एकता है तो अखंडता है। एकता में शक्ति है अत: हमें राष्ट्रीय एकता के महत्व को समझना चाहिए। आर्थिक और सामाजिक असमानता राष्ट्रीय एकता में बहुत बड़ी बाधा है। इसी प्रकार सांप्रदायिकता, भाषावाद, रंगभेद, दूषित शिक्षा प्रणाली एवं दूषित राजनीति भी राष्ट्रीय एकता में प्रमुख बाधक तत्व है।

राष्ट्रीय एकता को बल देने हेतु सर्वप्रथम देश के नागरिकों को एक दूसरे को आदर सम्मान देने हेतु जागरूक किया जाना चाहिए। सामाजिक असमानता को बल देने वाले सभी कानूनों को समाप्त किया जाना चाहिए। नकारात्मक विचारों से दूर रहकर सकारात्मक विचारों को बढ़ावा देना चाहिए। हमारी सरकार और मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न धर्म, संस्कृति, परंपरा, जातियां, रंग और पंथ के लोग एक साथ रहते हैं। विविधता में एकता हमारी राष्ट्रीय पहचान है, जिसको बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है। अत: हर भारतवासी को चाहिए कि राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में अपना योगदान अवश्य दें, तभी हम डा. एस. राधाकृष्णन की कही गई बात को सही साबित कर सकते हैं। भारत ही अकेला देश है, जहां मंदिरों, गिरिजाघरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और मठों में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व है। आज आवश्यकता है हम सब देशवासियों को महात्मा गांधी के इस कथन से प्रेरणा लेकर अपने कर्म पथ पर दृढ़ प्रतिज्ञा होकर चलते हुए देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भारत माता की सेवा में तन-मन-धन से जुट जाने की। जब तक हम एकता के सूत्र में बंधे हैं। तब तक मजबूत हैं और जब तक खंडित है, तब तक कमजोर है। शैक्षणिक संस्थानों को भी इस कार्य में बढ़-चढ़कर योगदान देना होगा। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता की इन पंक्तियों को पढ़कर अपनी राष्ट्रीयता को सर्वदा अखंड रखने का संकल्प लेना चाहिए। बाधाएं आती हैं आएं, घिरे प्रलय की घोर घटाएं।

पांव के नीचे अंगारे, सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं।

निज हाथों में हंसते हंसते, आग लगाकर जलना होगा।

कदम मिलाकर चलना होगा।

--

अतुल कुमार गोस्वामी

प्रधानाचार्य, साईं इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल, हल्दौर, बिजनौर

chat bot
आपका साथी