मजबूरी करा रही सैकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर

जेएनएन बिजनौर। कोरोना वायरस के संक्रमण के चक्र को तोड़ने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन है। लॉकडाउन में जो जहां है जैसा है वहीं रहने की अपील की गई है। मजदूरपेशा लोग इस अपील का पालन चाहकर भी नहीं कर पा रहे हैं। किसी भी तरीके से घर पहुंचना मजदूर की मजबूरी बन गई है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 25 Mar 2020 09:39 PM (IST) Updated:Thu, 26 Mar 2020 06:05 AM (IST)
मजबूरी करा रही सैकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर
मजबूरी करा रही सैकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर

मजबूरी करा रही सैकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर

जेएनएन, बिजनौर। कोरोना वायरस के संक्रमण के चक्र को तोड़ने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन है।

लॉकडाउन में जो जहां है, जैसा है, वहीं रहने की अपील की गई है। मजदूरपेशा लोग इस अपील का पालन चाहकर भी नहीं कर पा रहे हैं। किसी भी तरीके से घर पहुंचना मजदूर की मजबूरी बन गई है। दरअसल, उत्तराखंड में संचालित कंपनियों ने मजदूरों को आश्रय न देकर उनकी छुट्टी कर दी है। ऐसे में कई मजदूरपेशा लोग कई-कई किलोमीटर की पैदल यात्रा कर किसी तरह अपने घर पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। उत्तराखंड के हरिद्वार के महदूद क्षेत्र में स्थित की एक कंपनी में काम कर रहे स्योहारा थाना क्षेत्र के गांव हसनपुरा निवासी शीतल, रीतल अपने भाई अजय व अन्य साथियों के साथ 60 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर नजीबाबाद पहुंचे हैं। शीतल, रीतल ने बताया कि कंपनी मालिक ने कंपनी बंद कर उनकी छुट्टी कर दी। ऐसे में उन्हें मजबूरन अपने घर के लिए पैदल कूच करना पड़ा।

शाहजहांपुर निवासी अरविद और बिहारी दिल्ली से नजीबाबाद तो पहुंच गए, लेकिन घंटों रेलवे स्टेशन पर बैठने के बाद उन्होंने अपने घर पैदल पहुंचने का मन बनाया। अरविद का कहना है कि प्रधानमंत्री की लॉकडाउन की घोषणा के बाद कालाबाजारी शुरू हो गई। रातोंरात खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ गए। ऐसे में काम तो बंद हुआ ही, साथ ही मकान मालिक ने भी उन्हें निकाल दिया। जो पैसे उनके पास हैं, वह अपने परिवार तक कैसे पहुंचाएं और खुद कैसे घर पहुंचे, उसे इसकी चिता सता रही है। इसलिए पैदल ही घर पहुंचने का बीड़ा उठाया है।

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