नाविकों के सहारे बछेंद्रीपाल को ढूंढती रही लाचार मशीनरी

बिजनौर : डेढ़ माह पूर्व हुए नाव हादसे से प्रशासन ने कोई सबब नहीं लिया है। इसकी बानगी सोमवा

By JagranEdited By: Publish:Mon, 08 Oct 2018 11:45 PM (IST) Updated:Mon, 08 Oct 2018 11:45 PM (IST)
नाविकों के सहारे बछेंद्रीपाल को ढूंढती रही लाचार मशीनरी
नाविकों के सहारे बछेंद्रीपाल को ढूंढती रही लाचार मशीनरी

बिजनौर : डेढ़ माह पूर्व हुए नाव हादसे से प्रशासन ने कोई सबब नहीं लिया है। इसकी बानगी सोमवार रात बैराज के तट पर देखने को मिली। एवरेस्ट विजेता बछेंद्रीपाल घंटों गंगा में नाकाम संसाधनों की वजह से फंसी रही। प्रशासन लोकेशन के लिए गंगा के बाहर खड़ा होकर हाथ पांव मारता रहा। उसके पास न मोटर बोट थी और न सर्च लाइट। टार्च की रोशनी से तलाश होती रही। स्थानीय गोताखोरों की मदद से ही पुलिस-प्रशासन गंगा किनारे उछल-कूद करता रहा।

24 अगस्त को गंगा में हुए नाव हादसे को कोई नहीं भूला है। सात महिलाओं की जान चली गई थी, जबकि पांच महिलाओं का आज तक पता नहीं चला। उस वक्त प्रशासन की इंतजामों की पोल खुल गई थी। क्योंकि प्रशासन के पास एक भी मोटर बोट नहीं मिली थी। बाढ़ प्रबंधन के तमाम दावे खोखले साबित हुए थे। प्रशासन की ओर से मोटर बोट समेत तमाम इंतजाम पूरा करने का आश्वासन भी दिया गया था। गाजियाबाद से एनडीआरएफ व मुरादाबाद से पीएसी के गोताखोरों के सर्च अभियान में महिलाओं के शव मिले थे।

सोमवार को प्रशासन की तैयारी की फिर से पोल उस वक्त खुल गई जब बछेंद्रीपाल अपने 40 सदस्यीय दल के साथ बालावाली व बैराज के बीच गंगा के टापू में फंस गई। बीस मिनट का रास्ता घंटों में पूरा नहीं हुआ तो पुलिस-प्रशासन में बेचैनी हुई। संपर्क टूटने से हड़कंप मच गया। जिलाधिकारी अटल राय व एसपी उमेश कुमार ¨सह पूरे अमले के साथ बैराज पर पहुंच गए। जीपीएस के माध्यम से घंटों तक एक ही स्थान पर लोकेशन मिलने के बाद प्रशासन के कान खड़े हुए। एसपी ने पुलिस को तटबंध के आसपास तलाश करने के लिए टीमों को लगाया। वहीं प्रशासन के इंतजाम भी जीरो साबित हुए। उनके पास न मोटर बोट मिली और न सर्च लाइट। स्थानीय गोताखोर बुलाए गए, लेकिन वह भी कुछ नहीं कर सके। क्योंकि संसाधनों के बिना वह भी कुछ करने में कामयाब नहीं हो सके। पुलिस टीमें गंगा के किनारे पर दौड़ती रही। एसओ मंडावर अंशुमाली भारती नवलपुर तटबंध पर सर्च कर बछेंद्रीपाल से संपर्क करने में जुटे रहे। किसी तरह रात नौ बजे संपर्क हुआ तो नाव उस ओर रवाना की गई। माना जा रहा है कि अगर प्रशासन के पास बोट और अन्य संसाधन मौजूद होते तो बछेंद्रीपाल को समय से मदद मिल जाती।

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