खुद के जज्बे से बनेंगे पदक के हकदार

विश्व ओलंपिक दिवस मंगलवार को मनाया जाएगा। तमाम खिलाड़ी इसे मनाने की तैयारी में लगे हैं लेकिन खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं दिख रही है। आलम यह कि जिला स्टेडियम जहां एक कोच तक की सुविधा देने में लाचार दिखता है तो युवा कल्याण विभाग की सारी गतिविधि वर्ष भर में महज एक-एक

By JagranEdited By: Publish:Mon, 22 Jun 2020 07:02 PM (IST) Updated:Mon, 22 Jun 2020 07:02 PM (IST)
खुद के जज्बे से बनेंगे पदक के हकदार
खुद के जज्बे से बनेंगे पदक के हकदार

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : विश्व ओलंपिक दिवस मंगलवार को मनाया जाएगा। तमाम खिलाड़ी इसे मनाने की तैयारी में लगे हैं लेकिन खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं दिख रही है। आलम यह कि जिला स्टेडियम जहां एक कोच तक की सुविधा देने में लाचार दिखता है तो युवा कल्याण विभाग की सारी गतिविधि वर्ष भर में महज एक-एक ब्लाक व जिला स्तरीय खुली ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगिता संपन्न कराने तक सिमटी नजर आती है। ऐसे में कहा जा सकता है कि खिलाड़ियों को खुद के जज्बे व संसाधन से पदक के हकदार बनना है।

------------

खिलाड़ियों को सुविधा देने का हो रहा प्रयास

शासन स्तर से जिला स्टेडियम को जो भी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। खिलाड़ियों को उस सुविधा का भरपूर लाभ देने का प्रयास किया जाता है। खिलाड़ियों को समय-समय पर मिलने वाले कोच के जरिए प्रशिक्षण दिलाया जाता है। हालांकि मौजूदा समय में लॉकडाउन के चलते सारी खेल गतिविधियां स्थगित हैं। चित्र.14-- धर्मवीर सिंह, जिला क्रीड़ाधिकारी भदोही।

-------------

प्राथमिक स्तर से सुविधा व संसाधन देने की जरूरत

- जिले व देश में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कमी नहीं हैं। तमाम खिलाड़ी ऐसे हैं जो काबिलियल होने के बाद सुविधा व संसाधन न मिलने से दम तोड़ देते हैं। प्राथमिक स्तर पर उन्हें शासन स्तर से कोई सुविधा नहीं मिल पाती। जिससे वह पदक हासिल करें। प्रतिभावान खिलाड़ियों को शुरू से ही प्रोत्साहित किया जाय। तो निश्चित ही वह देश के लिए पदक हासिल करने से पीछे नहीं रहेंगे। चित्र.15--राजेंद्र दुबे राजन, सचिव जिला ओलंपिक संघ

-------------

सुविधाओं से ज्यादा जज्बे की दरकार

- यह कहना उचित नहीं है कि देश में बेहतर खेल इंफ्रास्ट्रक्चर न होने से खिलाड़ी पदक नहीं जीत पाते। सुविधाएं बढ़ी हैं। बड़े- बड़े स्पो‌र्ट्स कांप्लेक्स और ट्रेंड कोच हैं। जबकि मिल्खा सिंह के समय में न तो बेहतर मैदान थे न ही अनुभवी कोच। यहां तक कि खेल मंत्री जैसा कोई पद भी नहीं था। खिलाड़ी नंगे पांव दौड़ते थे। अपनी मेहनत और जज्बे से देश के लिए पदक जीतते थे। आज खिलाड़ियों का भविष्य उज्जवल है। एक ओलम्पिक पदक जीतने वालों को करोड़ों रुपये सरकार पुरस्कार के रूप में देती है साथ में नौकरी भी। समग्र रूप से देखा जाए तो पूर्व के मुकाबले अब देशों में खेल का माहौल बदला है। चित्र.16--अशोक गुप्ता, अंतराष्ट्रीय पदक विजेता।

chat bot
आपका साथी