कालीन उद्योग के लिए देश में विकसित किए जा सकते हैं बाजार
जासं भदोही वैश्विक महामारी के दौर में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी आर्थिक मंदी की हालत
जासं, भदोही : वैश्विक महामारी के दौर में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी आर्थिक मंदी की हालत है। अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस सहित कुछ देशों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर कालीन आयातक देशों से आर्डर में कमी आई है। ऐसे में आत्मनिर्भर भारत की तर्ज पर देश में ही कालीन उद्योग के लिए बेहतर बाजार विकसित किया जा सकता है। इसे लेकर कालीन परिक्षेत्र में चर्चा होने लगी है। दो साल पहले तक मुंबई, दिल्ली में आयोजित होने वाली औद्योगिक प्रदर्शिनियों की तर्ज पर महानगरों में राष्ट्रीय स्तर के कालीन मेले का आयोजन किया जा सकता है।
विशेषकर फ्लोर कवरिग, कुशन से संबंधित उत्पादों को अपने बाजारों में आसानी के साथ बेचा जा सकता है। इस दिशा में कुछ निर्यातकों ने पहल भी की है। वह दिल्ली व मुंबई में शोरूम स्थापित कर निजी तौर पर व्यवसाय को गति देने में जुटे हैं। इसमें सरकार से भी अपेक्षित सहयोग चाहिए। निर्यातकों का मानना है कि महामारी के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त होने में समय लगेगा। ऐसे में सिर्फ निर्यात पर निर्भर रहना ठीक नहीं है। देश में छोटे-छोटे आयोजन कर व्यवसाय को गतिमान रखा जा सकता है। इसमें स्वदेशी बाजार की तलाश को लेकर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
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अपने देश में व्यवसाय की अधिक संभावनाएं हैं। मल्टीनेशनल कंपनियां भारत में बाजार तलाश रही हैं। ऐसे में हम कालीन उत्पादों के लिए अपने घर में बाजार क्यों नहीं तलाश कर सकते। अब वक्त आ गया है। इस दिशा में औद्योगिक संगठनों को पहल करनी चाहिए ताकि निर्यात के साथ-साथ उद्यमी देश में भी कालीनों का व्यवसाय कर सकें।
चित्र-29 पीयूष बरनवाल , निर्यातक
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भदोही में मेगा मार्ट की स्थापना इसी उद्देश्य के साथ की गई है। ताकि साल में दो अंतरराष्ट्रीय व दो डोमोस्टिक फेयर का आयोजन किया जा सके। देश के अधिक ठंड वाले प्रांतों में कालीनों का व्यवसाय किया जा सकता है लेकिन इसमें सरकार से सहयोग की जरूरत है। एकमा इस संबंध में जल्द ही शासन को पत्र प्रेषित कर सुझाव प्रस्तुत करेगी।
चित्र-30 असलम महबूब, मानद सचिव अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ।