गंगा की रेती में करें परवल की खेती, मिलेगा लाभ

परवल बहुत ही पौष्टिक स्वास्थ्यवर्धक व औषधीय गुणों से भरपूर एक लोकप्रिय एवं आसानी से पचने वाली शीतल पित्तनाशक हृदय एवं मष्तिष्क को बलशाली बनाने वाली सब्जी है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 14 Nov 2019 03:02 AM (IST) Updated:Thu, 14 Nov 2019 06:09 AM (IST)
गंगा की रेती में करें परवल की खेती, मिलेगा लाभ
गंगा की रेती में करें परवल की खेती, मिलेगा लाभ

जागरण संवाददाता, ऊंज (भदोही) : परवल बहुत ही पौष्टिक स्वास्थ्यवर्धक व औषधीय गुणों से भरपूर एक लोकप्रिय एवं आसानी से पचने वाली शीतल पित्तनाशक, हृदय एवं मस्तिष्क को बलशाली बनाने वाली सब्जी है। इसमें विटामिन, कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन की अधिकता पाई जाती है। इसलिए परवल को कद्दूवर्गीय सब्जियों का राजा भी कहा गया है। जिस तरह यह स्वास्थ्य के लिए गुणकारी है उसी तरह यदि किसान इसकी खेती करें तो फसल से मिलने वाली उपज से उनकी माली हालत भी सुधर सकती है। विशेषकर गंगा के किनारे रेत में परवल की खेती का बिल्कुल ही माकूल समय चल रहा है।

डीम्ड यूनिवर्सिटी नैनी प्रयागराज के कृषि वैज्ञानिक विषय वस्तु विशेषज्ञ उद्यान डा. टीडी मिश्रा ने बताया कि गंगा की रेत में परवल की रोपाई (बोआई) के लिए नवंबर माह (गंगा बाढ़ समाप्त हो जाने के बाद का समय) अत्यंत माकूल होता है। पर्याप्त सिचाई की सुविधा होने पर फरवरी व मार्च माह में भी रोपाई की जा सकती है। उन्होंने बताया कि गंगा की रेती में फसल की रोपाई में लगे किसान प्रजातियों के चयन, उर्वरक व कीटनाशकों के प्रबंधन आदि में जरा सी सावधानी बरतकर न सिर्फ फसल को सुरक्षित रख सकते हैं बल्कि अधिक उत्पादन भी हासिल होगी।

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कैसे करें रोपाई

- रोपाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ मीटर व पौध से पौध की दूरी एक मीटर रखनी चाहिए। साथ ही तीस गुणे तीस के लंबे, चौड़े व गहरे गड्ढे में पौध लगाना लाभकारी होगा। फसल को कीट रोगों से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड की 0.5 मिली प्रति लीटर पानी के दर से घोल बनाकर करना चाहिए। कीटनाशकों का छिड़काव हमेशा सुबह के समय करना चाहिए। क्योंकि परवल के फूल सायंकाल पुष्पित होते हैं। पावडर वाले कीटनाशक का छिड़काव कतई न करें।

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कौन होगी उत्तम प्रजाति

- भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी द्वारा विकसित की गई वीपीआरजी 101, 102, 103 व 104 प्रजातियां ज्यादा उत्पादन देने वाली हैं। केंद्रीय बागवानी केंद्र रांची से विकसित स्वर्ण अलौकिक, स्वर्ण रेखा से भी उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसी तरह आइआइपीआरपीजी, नरेंद्र परवल 207, 307, 604 प्रजाति के फसल से 220 से 230 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।

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क्या बरतें सावधानी

- परवल की बोआई करते समय खेत में नर व मादा पौधों का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यानी नर व मादा दोनों पौधे लगाया जाना चाहिए। प्रति नौ मादा पौध पर एक नर पौध लगाना चाहिए। वह इस तरह की नर पौधे अपने पास के सभी मादा पौधों के पुष्पों को परागित कर सकें। पहचान के लिए मादा पौधों के फूल का निचला भाग फूला सफेद व रोएंदार होता है जबकि नर पुष्प सीधा व लंबा होता है।

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