सावधानी से करें मक्के की खेती, बेहतर मिलेगा उत्पादन
मक्का एक बहुपयोगी फसल है। मानव के साथ पशुओं के आहार क
जागरण संवाददाता, ऊंज (भदोही) : मक्का एक बहुपयोगी फसल है। मानव के साथ पशुओं के आहार का भी साधन है। बारिश के मौसम में तैयार होने वाले मक्के की बोआई का माकूल समय चल रहा है। बोआई में लगे किसान बीजों के चयन से लेकर उर्वरक प्रबंधन व बीज शोधन आदि में जरा सी सावधानी बरतकर किसान उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं। क्या बरतें सावधानी आदि बिदुओं पर जिला कृषि अधिकारी अशोक कुमार प्रजापति ने जरूरी जानकारी साझा की।
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कौन की प्रजाति का बीज होगा बेहतर
- मक्के की खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उन्नतशील प्रजातियों का शुद्ध बीज ही बोआई लिए प्रयोग करना लाभकारी होगा। संकर प्रजाति में मालवीय संकर मक्का-2, प्रो-303, 316, केएच-510, बायो-9682, एचक्यूपीएम-5 व 8 तथा संकुल प्रजाति के लिए तरूण, नवीन, कंचन, श्वेता, गौरव, आजाद उत्तम आदि प्रजाति की बीज को चयन लाभकारी होगा। बोआई जून के प्रथम पक्ष तक कर देना चाहिए। जिससे बारिश के पहले ही खेत में पौधे भली भांति स्थापित हो जायें। शीघ्र पकने वाली मक्का की बोआई जून के अन्त तक अवश्य पूरी कर लेनी चाहिे।
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कैसे करें बीज शोधन
- बीज जनित रोगों से बचाव हेतु दो ग्राम धीरम एवं एक ग्राम कार्बेंडाजिम से प्रति किलो बीज का शोधन किया जा सकता है। दवाओं को बीज में अच्छी तरह मिलाकर कुछ समय तक ढंककर रख दिया जाय। इससे बीज शोधन हो जाता है।
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उर्वरक प्रबंधन
- बोआई के समय 60-60 किग्रा नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से कूड़ों में बीज के नीचे डालना चाहिए। 30 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से बोने के 25 दिन बाद टापड्रेसिग के रूप में छिड़काव करना चाहिए। यदि घर में कम्पोस्ट खाद उपलब्ध हो तो रसायनिक खाद का प्रयोग कम से कम करना लाभकारी होगा। मक्के की खेती में निराई-गुड़ाई का अधिक महत्व है। पहली निराई जमाव के 15 दिन था दूसरी 35-40 दिन बाद करनी चाहिए। खर पतवार नष्ट करने के लिए एट्राजिन दो किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर बनाकर बोआई के दूसरे दिन छिड़काव करना लाभकारी होगा।