यहां रोजाना जोखिम में रहती है जान

बस्ती: माझा इलाके किसानों के लिए खेती करना सर्वाधिक कठिन कार्य है। श्रम के अलावा किसानों क

By JagranEdited By: Publish:Thu, 04 Jan 2018 11:45 PM (IST) Updated:Thu, 04 Jan 2018 11:45 PM (IST)
यहां रोजाना जोखिम में रहती है जान
यहां रोजाना जोखिम में रहती है जान

बस्ती: माझा इलाके किसानों के लिए खेती करना सर्वाधिक कठिन कार्य है। श्रम के अलावा किसानों की जान प्रतिदिन जोखिम में रहती है। दुबौलिया ब्लाक के दो दर्जन से अधिक गांव ऐसे हैं जहां के रहने वाले किसानों के खेत नदी उस पार है। इनके खेत भी हर समय साल इधर-उधर हो जाते हैं। बाढ़ आने पर चारो तरफ पानी ही पानी नजर आता है। बाढ़ उतरने के बाद जब खेत खाली होते हैं और खेती का समय आता है तो सबसे पहले अपने खेत खोजते हैं। यहां के 1000 से अधिक किसानों के 8000 एकड़ से अधिक खेत नदी उस पार हैं। जिनकी देखभाल करने के लिए किसानों को प्रतिदिन नदी पार करने की मजबूरी होती है। घाघरा की तीव्र धारा को नाव से पार करना उनके लिए रोज खतरे का सबब बनता है। अक्सर नदी पार करने के दौरान हादसे भी हो जाते हैं। यदि खुशकिस्मत रहे तो तैर कर पार हो जाते हैं अन्यथा जान जाना तय है। नदी पार करने के दौरान नाव पलटने की भी घटना हो जाती है। पूर्व में सेरवा घाट के पास हुए हादसमें तीन लोगों की मौत हो गई थी। मझियार गांव के पास एक व्यक्ति की नदी पार करने के दौरान डोंगी डूबने से मौत हो गई थी। गौरा गांव के पास बीते वर्ष एक युवक की इसी तरह से नदी में डूबने से मौत हुई थी। वर्ष में एक फसल लेने के लिए लोगों को हर दिन खतरे का सामना करना पड़ता है। इस इलाके में अक्सर रबी सीजन में हादसे होते हैं। बीते गुरुवार की शाम को पारा गांव के पास नाव पलटने से 25 लोगों की जानपर बन आई। इनमें से 21 लोग तो किसी तरह नदी से तैरकर बाहर आ गए लेकिन 4 लोगों का अब भी पता नहीं चल सका है। पारा, दलपतपुर, गौरा, शुकुलपुरा, मटिहा, धनखरपुर, भिउरा, मझियार, चांदपुर, विशुनदासपुरवा, कटरिया, बंजरिया, ऊंजी, किशुनपुर लटेरा, केवाड़ी, ¨डगरापुर, घोसियापुर, बैरागल सहित दर्जनों गांवों के लोगों की खेती नदी उसपार है। जहां उन्हें आए दिन जाना पड़ता है। यहां के किसानों का कहना है कि यह एक ऐसी समस्या है जिसका कोई समाधान नहीं है। नदी की धारा बदली के चलते उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है। पहले उनके खेत नदी के इसी पार हुआ करते थे। यदि नदी अपने पूर्व के रास्ते पर हो जाए तो उनकी समस्या खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी।

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