स्मृति द्वार के जरिये सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यादें संजोने की तैयारी

शिवहर्ष किसान पीजी कालेज के हिदी विभागाध्यक्ष रहे डा.पीएन द्विवेदी लंबे कवि सक्सेना से लंबे समय तक जुड़े रहे। कहा वर्ष 1977 में पहली बार वह उनसे दिल्ली में मिले थेतब वो दिनमान में थे। कहा पत्र और मिलने पर बस्ती न आने की वजह पूछता था लेकिन कोई जवाब नहीं देते थे।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 23 Sep 2021 11:46 PM (IST) Updated:Thu, 23 Sep 2021 11:46 PM (IST)
स्मृति द्वार के जरिये सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यादें संजोने की तैयारी
स्मृति द्वार के जरिये सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यादें संजोने की तैयारी

बस्ती: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कवि एवं साहित्यकार थे। इनकी लेखनी से कोई विधा अछूती नहीं रही। कविता,गीत,नाटक हो अथवा आलेख। जितनी कठोरता से व्यवस्था में व्याप्त बुराइयों पर आक्रमण किया,उतनी ही सहजता से वह बाल साहित्य के लिये भी लेखनी चलाते रहे। शुक्रवार 24 सितंबर को उनकी पुण्यतिथि है। इनकी यादों को संजोने के साथ नई पीढ़ी को साहित्य के इस पुरोधा से परिचित कराने के लिए महादेवा विधान सभा क्षेत्र के अकसड़ा में भव्य स्मृति द्वार बनाया जा रहा है।

महादेवा के विधायक रवि सोनकर ने एक अच्छी पहल की है। महापुरुषों और बस्ती का नाम देश-दुनिया में रोशन करने वाले कवि और साहित्यकारों की याद में वह प्रमुख चौराहों पर विधायक निधि से भव्य स्मृति द्वार बनवा रहे हैं। नेता और गदहा जैसी कविता लिखने वाले सर्वेश्वर दयाल से हमारे क्षेत्र की नई पीढ़ी अपरिचित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी कविता के सहारे विपक्ष पर व्यंग्य कसा था। बस्ती में जन्मे और पले बढ़े कवि सक्सेना ने हाईस्कूल तक की शिक्षा यहीं ग्रहण की। आगे की पढ़ाई उन्होंने वाराणसी और प्रयागराज में पूरी की। कवि सक्सेना ने साहित्यिक ऊंचाइयों को छुआ। काव्य संग्रह खूंटियों पर टंगे हुए लोग के लिये 1983 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। काठ की घंटियां,बांस का पुल,गर्म हवाएं,एक सूनी नाव, कुआनो नदी और गधा आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं।

बस्ती में रहता है भाई का परिवार

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के परिवार में दो बेटियां विभा और शुभा हैं। दोनों दिल्ली में रहती हैं। बस्ती में मालवीय रोड पर इनके भाई श्रद्धेश्वर दयाल सक्सेना का परिवार रहता है। भाई के पुत्रों ने कई बार मिलने का प्रयास किया। मार्मिक पत्र भेजे, लेकिन नहीं मिले। इतना जरूर था एक, बार भतीजी के पत्र के जवाब में उसे प्यार भरा स्नेह का संदेश जरूर भेजा।

बिसरा न पाए माटी की महक

शिवहर्ष किसान पीजी कालेज के हिदी विभागाध्यक्ष रहे डा.पीएन द्विवेदी लंबे कवि सक्सेना से लंबे समय तक जुड़े रहे। कहा वर्ष 1977 में पहली बार वह उनसे दिल्ली में मिले थे,तब वो दिनमान में थे। कहा पत्र और मिलने पर बस्ती न आने की वजह पूछता था, लेकिन कोई जवाब नहीं देते थे। एक बार दिल्ली में मिले,तो जिद करके पूछा कि आप क्यों घर नहीं आते हैं,किसी को पत्रों का जवाब भी नहीं देते। तब कहा था कि हमने गरीबी में जिदगी जी है। बस्ती गरीब जिला है,जहां बहती है कुआनो। मेरी हर कहानी,लेख और काव्य संग्रह बस्ती की चिट्ठी ही तो है। 76 साल की उम्र में भी डा. द्विवेदी को कवि सक्सेना के सारे संस्मरण याद हैं। कहा कि वह अपनी लेखनी के जरिये गांव,गरीब,किसानों के साथ ही आम लोगों के दर्दों से वह सदैव जुड़े रहे।

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