बैलगाड़ी है सहारा
हीरा-मोती की जोड़ी एक जमाना था जब घर के बैलों की जोड़ी परिवार के संपन्नता को दर्शात
हीरा-मोती की जोड़ी : एक जमाना था, जब घर के बैलों की जोड़ी परिवार के संपन्नता को दर्शाती थी। दौर भले ही बदल गया, लेकिन कुदरहा क्षेत्र में आज भी राम जनकी मार्ग पर बैलगाडि़यों की झुंड दिखाई देता है। पिपरपाती मुस्तहकम, टेंगहरिया राजा, कुदरहा, पिपरपाती एहतमाली, माटियरिया आदि गांव में लोग बैलों की पूजा करते हैं। परिवार की जरूरतें बैलों के बल पर ही पूरी हो रही हैं। गाड़ीवान थानेदार, सिरपत, हृदयराम व धर्मराज ने बताया कि बैलों को बेटे की तरह पालते हैं। अफसोस होता है कि इस दौर में बछड़ों का कोई कद्र नहीं रह गया। पशुपालक बछड़ों को बेसहारा छोड़ दे रहे। वह भी एक समय था जब मुंशी प्रेमचंद ने हीरा-मोती बैल पर कथा लिखी थी।