शाहजहांपुर के इस युवक ने ताइवान की 'रेड लेडी' से दोस्ती कर बदली किस्मत, जानकर रह जाएंगे हैरान
शहर के रूफस चरन लेन निवासी असित पाठक भी उनमें से एक हैं। जलालाबाद तहसील के गांव बीघापुर स्थित अपने दस एकड़ खेत में वह इस बार धान के स्थान पर ताइवान का रेड लेडी (पपीते की प्रजाति) लगा रहे हैं।
शाहजहांपुर, अंबुज मिश्र। खेती अब घाटे का सौदा नहीं है। जरूरत है नई सोच व कुछ अलग करने की। जिले के कई किसान आगे कदम बढ़ा चुके हैं। शहर के रूफस चरन लेन निवासी असित पाठक भी उनमें से एक हैं। जलालाबाद तहसील के गांव बीघापुर स्थित अपने दस एकड़ खेत में वह इस बार धान के स्थान पर ताइवान का रेड लेडी (पपीते की प्रजाति) लगा रहे हैं। देसी की तुलना में सात से दस गुना ज्यादा उत्पादन देने वाले इस पपीते के साथ अदरक, प्याज, सहजन लगा सकते हैं। अधिकारी भी इसे बेहतर विकल्प मान रहे हैं।
इस तरह हुई शुरुआत
2012 में एक मल्टीनेशनल पेस्टीसाइड कंपनी की नौकरी छोड़ असित ने खेती का रुख किया। कुछ समय पहले जलौन जिले के अकौड़ी गांव निवासी शुभम त्रिपाठी के संपर्क में आए। उनके बुलावे पर वहां रेड लेडी की खेती देखी। कृषि वैज्ञानिकों से चर्चा की। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार में हो रहे उत्पादन की जानकारी ली।
यह है अंतर असित की माने तो देसी प्रजाति के पेड़ पर 15 से 20 किलो पपीता आता है। जबकि रेड लेडी के एक पेड़ पर यह 70 से 100 किलो तक होता है। इसके एक पपीते का वजन तीन से पांच किलो तक होता है। जबकि देसी दो से ढाई किलाे का होता है।
मुनाफे का गणित एक एकड़ में 1200 पौधे लगते हैं। लगभग सवा लाख रुपये प्रति एकड़ लागत आती है। एक पेड़ से औसतन 50 किलो उत्पादन ही माना जाए तो 60 हजार किलो पपीता मिलेगा। थोक रेट 12 रुपये मान भी लिया जाए तो सात लाख बीस हजार रुपये की आय होगी। यानी छह लाख रुपये प्रति एकड़ मुनाफा हो सकता है।
आठ माह में पहली फसल
इसका दस ग्राम का एक पैकेट 3500 रुपये का होता है। जिसमें पांच से छह सौ बीज होते हैं। एक एकड़ में ढाई से तीन पैकेट लगते हैं। जलालाबाद की दोमट बलुई मिट्टी इसके अनुकूल है। पौध लगाने के आठवें महीने में पहली फसल अा जाती है। पौधों में छह व नालियों में आठ फीट की दूरी होती है।
इसलिए नहीं गेहूं व धान
असित कहते हैं कि गन्ना, गेहूं व धान का समर्थन मूल्य तय होता है। बाजार में उससे ज्यादा रेट नहीं मिलते। समय से भुगतान न होने, फसल खराब होने जैसी दिक्कतें भी हैं। पपीता कैश क्रॉप है। रेट भी ज्यादा मिलते हैं।
ये हैं खूबियां
देसी प्रजाति के पेड़ पर एक साल आता है पपीता
रेड लेडी के पेड़ पर डेढ़ साल में तीन फसल आती हैं।
अंदर से लाल रंग का होता है यह पपीता
देसी पपीते से मिठास व मिनरल्स में बेहतर
रेड लेडी पपीते का उत्पादन दूसरी प्रजातियों से बेहतर है। इसका बाजार में दाम भी अच्छा मिलता है। किसानों के लिए आय बढ़ाने का यह बेहतर विकल्प हो सकता है। राघवेंद्र सिंह, जिला उद्यान अधिकारी