World Tiger Day : बरेली में जंगल के बिना दो बार हाे चुका बाघ का संरक्षण, दुधवा के जंगल में छाेड़ी गई शर्मीली
World Tiger Day वैसे तो देश में बाघों को संरक्षण करने के लिए वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर लांच किया गया जो आज भी काम कर रहा है। आबादी में बाघ आने के पीछे कई कारण हो सकते हैं।
बरेली, जेएनएन। World Tiger Day : वैसे तो देश में बाघों को संरक्षण करने के लिए वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर लांच किया गया, जो आज भी काम कर रहा है। आबादी में बाघ आने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। पहला जंगल में बाघों की संख्या में बढ़ोत्तरी, दूसरा भोजन में कमी हो सकता है। बरेली में वैसे तो कोई जंगल नहीं है, लेकिन 1962 में मुंबई के सेठ तुलसीदास किलाचंद ने फतेहगंज पश्चिमी में 1400 एकड़ में रबर फैक्ट्री विकसित कि थी। जो बंद होने के बाद से जंगल में परिवर्तित हो गई। जहां एक बार बाघ व एक बाघिन को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के मानकों का पालन करते हुए संरक्षित करने के बाद पकड़ा गया।
प्रभागीय वन अधिकारी भारत लाल ने बताया कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व से एक बाघ फतेह 28 फरवरी 2018 को रबर फैक्ट्री पहुंचा था। जिसे 64 दिन संरक्षित रखने के बाद पकड़ा गया था। जो अभी कानपुर वन्य जीव प्राणी उद्यान में हैं। इसके बाद 11 मार्च 2020 को देखी गई थी, बाघिन शर्मिली जिसे 15 महीनों में पकड़ा गया। जिसे लखीमपुर खीरी के दुधवा नेशनल पार्क के हिस्से किशनपुर सेंचुरी छोड़ा गया। रबर फैक्ट्री के पास घनी आबादी थी, बाघ और मानव के बीच संघर्ष न हो इसके लिए दोनों को पकड़ा गया।
जब तक बाघ हैं, तब तक सुरक्षित हैं जंगल
कहते हैं जहां बाघ होते हैं, वहां पारिस्थितिकी तंत्र स्वस्थ रहता है। बाघों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। इसी कवायद में फतेहगंज पश्चिमी की बंद रबर फैक्ट्री में पहले बाघ व उसके बाद एक बाघिन ने आकर अपना आशियाना बनाया। विभाग के अधिकारियों के मुताबिक बाघ व बाघिन के संरक्षण के लिए यह जगह मुफीद है। जगह का कोर्ट में विवाद होने के कारण इसे संरक्षित जगह बनाए जाने के लिए विभाग से पत्र नहीं लिखा गया।
पिछली गणना में 3900 बाघ थे
वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के मुताबिक भारत में बाघों की आबादी को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में नवीनतम बाघ गणना ने वर्तमान बाघों की आबादी 2967 की पुष्टि की है। 2014 में यह आंकड़े 2226 थे। पिछले साल जारी किए गए भारतीय बाघ सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में अब बाघों की संख्या लगभग 70 प्रतिशत है। वहीं बाघों की घटती आबादी की वजह वन क्षेत्र घटना है। इसे बढ़ाना और संरक्षित रखना सबसे बड़ी चुनौती है। चमड़े, हड्डियों एवं शरीर के अन्य भागों के लिए अवैध शिकार, जलवायु परिवर्तन जैसी भी चुनौतियां शामिल हैं।
बाघों की जिंदा प्रजातियां: साइबेरियन टाइगर, बंगाल टाइगर, इंडोचाइनीज टाइगर, मलायन टाइगर, सुमात्रन टाइगर
विलुप्त हो चुकी प्रजातियां: बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर, जावन टाइगर
फतेहगंज पश्चिमी की बंद रबर फैक्ट्री में पहले बाघ व उसके बाद घूमते हुए बाघिन आयी। दोनों ही लंबे समय तक यहां संरक्षित रहे। फैक्ट्री परिसर के आसपास घनी आबादी होने के कारण थोड़ा था खतरा जरूर था। लेकिन फैक्ट्री में बाघ के लिए अनुकूल जगह व शिकार उपलब्ध है। - भारत लाल, प्रभागीय वन अधिकारी