वन्यजीवों के कारण क्यों संवेदनशील हो गया अमरिया, जानने के लिए पढे़ ये रिपोर्ट
जिले की अमरिया तहसील वन्यजीवों के बढ़ने की वजह से संवेदनशील हो गई है। इस क्षेत्र में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है।
पीलीभीत, जेएनएन। जिले की अमरिया तहसील वन्यजीवों के बढ़ने की वजह से संवेदनशील हो गई है। इस क्षेत्र में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। कई महीने पहले एक तेंदुआ भी जंगल से निकलकर इसी इलाके में घूमने लगा है। तेंदुआ को पिंजरे में कैद करने की कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकी हैं। इसका कारण बाघ परिवार है। पिंजरा लगाते समय यह आशंका बनी रहती है कि अगर तेंदुआ की बजाय कोई बाघ या शावक इसमें फंस गया तो स्थिति गंभीर बन सकती है।
वर्ष 2012 में नवंबर माह के दौरान एक बाघिन पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल से निकलकर अमरिया क्षेत्र में पहुंच गई थी। हालांकि तब तक पीटीआर नहीं बना था। तभी से उस इलाके में बाघों का प्रजनन हो रहा है। जिसके फलस्वरूप बाघों की संख्या बढ़कर दस से अधिक हो गई है। बाघों का ये कुनबा ड्यूनीडाम के आसपास के क्षेत्र में साथ लगे उत्तराखंड के बार्डर इलाके में देवहा नदी, कैलाश नदी के आसपास ऊंची घासयुक्त एवं जलभराव क्षेत्रों के निकट रह रहा है।
इन बाघों की वन विभाग लगातार मॉनीटरिंग भी करता रहता है। इस कार्य में वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया तथा विश्व प्रकृृति निधि का सहयोग मिला हुआ है। वन विभाग की पांच सदस्यीय टीम लगातार निगरानी रखती है। साथ ही टाइगर ट्रैकर भी काम कर रहे हैं। स्थानीय लोग भी वन विभाग को सहयोग करते रहे हैं। खतरा तब और बढ़ गया तब कई महीने पहले जंगल से बाहर निकला एक तेंदुआ भी इन बाघों के मध्य यदाकदा नजर आने लगा।
तेंदुआ इस इलाके के बड़े फार्म हाउसों में सु्रक्षा के लिए पाले गए अच्छी एवं महंगी नस्ल के अनेक कुत्तों को अपना शिकार बना चुका है। इस कारण किसानों में रोष बढ़ रहा है। तेंदुआ कभी ड्यूनीडाम से लेकर गांव जगत के निकट कब्रिस्तान तक विचरण करता है और कभी उत्तराखंड की ओर निकल जाता है। तेंदुआ को रेस्क्यू करके पकड़कर सुदूर जंगल में छोड़ने की योजना वन विभाग ने कई बार बनाई लेकिन जहां पर भी पिंजरे लगाए जाते तो चालाक तेंदुआ उस इलाके से दूर चला जाता।
सूूरजपुर, रसूला और जगत में ऐसे प्रयास तेंदुए ने नाकाम कर दिए। पिंजरा लगाते वक्त वन विभाग के अधिकारी इस बात को लेकर भी सशंकित रहते हैं कि कहीं तेंदुआ की बजाय को बाघ या शावक कैद न हो जाए। ऐसे होने पर बाघिन या बाघ खुंखार होकर कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे में स्थितियां काफी संवेदनशील हो गई हैं।
तेंदुआ को ट्रैप करने के लिए वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ प्रयास चल रहा है। कहीं पर भी तेंदुआ के लिए पिंजरा लगाने से पहले यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि उस इलाके में बाघों या उनके शावकों की लोकेशन तो नहीं है। बाघों की लोकेशन होने पर पिंजरा बंद करना पड़ जाता है। इधर, अगस्त के महीने में अब तक इलाके में तेंदुआ की लोकेशन नहीं मिली है। संजीव कुमार, प्रभागीय निदेशक, सामाजिक वानिकी एवं वन्यजीव प्रभाग