नरभक्षी बाघ हो या तेंदुआ, इन्हें नहीं लगता डर, जानें बरेली में बाघिन पकड़ने वाले हीरो की कहानी
बाघ तेंदुआ जैसे खतरनाक जानवर का नाम सुनते ही हर किसी के शरीर में सिरहन दौड़ जाती है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जिन्हें खतरनाक जानवरों से डर नहीं बल्कि उनसे प्रेम होता है। पूरे प्रदेश में कहीं भी इन्हें जानवरों को पकड़ने के लिए इन्हें बुलाया जाता है।
बरेली, जेएनएन। बाघ, तेंदुआ जैसे खतरनाक जानवर का नाम सुनते ही हर किसी के शरीर में सिरहन दौड़ जाती है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जिन्हें खतरनाक जानवरों से डर नहीं बल्कि उनसे प्रेम होता है। पूरे प्रदेश में कहीं भी आबादी के बीच इन्हें जानवरों को पकड़ने के लिए इन्हें बुलाया जाता है। आदमखोर बाघ हो या तेंदुआ इन्हें यह आसानी से पकड़ लेते हैं।
डा. दक्ष गंगवार : पीलीभीत टाइगर रिजर्व के संविदा वेटनरी आफिसर डा. दक्ष गंगवार अभी तक ऐसे 50 अभियानों में शामिल हो चुके हैं। वह 30 से ज्यादा बाघ और तेंदुए पकड़ चुके हैं। पिछले कई वर्षों से वह वाइल्ड लाइफ से जुड़े हैं। वह जंगली जानवरों से डरते नहीं बल्कि उन्हें बचाने का प्रयास करते हैं। फतेहगंज पश्चिमी की बंद रबर फैक्ट्री में घूम रही बाघिन शर्मिली को टैंक के ऊपर से केवल एक ही डार्ट मारकर उन्होंने ट्रैंकुलाइज किया।
सुशांत सोमा : पीलीभीत से डब्ल्यूटीआइ (वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया) के वन्यजीव वैज्ञानिक सुशांत सोमा जम्मू के रहने वाले हैं। 2018 में वह वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया से जुड़े। ढाई वर्ष में वह 25 से ऊपर रेस्क्यू में शामिल हो सफलता हासिल कर चुके हैं। इस वर्ष टाइगर का यह उनका तीसरा रेस्क्यू था। रबर फैक्ट्री में बाघिन का सटीक लोकेशन पता करने व उसे सुरक्षित पकड़ने में सुशांत सोमा का मुख्य योगदान रहा है। जिसके लिए मुख्य वन संरक्षक ललित कुमार, पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर जावेद अख्तर, डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल, प्रभागीय वन अधिकारी भारत लाल ने जमकर सराहना कर बधाई दी। वहीं देर शाम मयूख चटर्जी, प्रमुख मानव-वन्यजीव संघर्ष शमन, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने भी सुशांत के कार्यों की सराहना की।
जंगलों की तुलना में थोड़ा सा कठिन सा रेस्क्यू : डब्ल्यूटीआइ के सुशांत सोमा ने जागरण से बातचीत के दौरान बताया कि रबर फैक्ट्री में बाघिन का मूवमेंट व सटीक ठहरने की जगह पता करना बड़ी चुनौती थी। दरअसल घना जंगल होने के साथ ही बड़े सुखे नाले, अंधेरे कमरे, बड़े-बड़े टैंक, झाड़ियों के साथ ही जगह-जगह रबर व तारकोल पड़ा होने से कई बार बाघिन के पगमार्क भी नहीं मिल पा रहे थे। जिससे उसे ट्रैक करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था। 27 मई को वह इस अभियान के लिए अपनी छह सदस्यीय टीम के साथ पहुंचे। लगातार मॉनीटरिंग के बाद 15 जूून को बाघिन के रहने का ठिकाना मालूम हुआ। कैमरा लगा उसे वैरीफाई किया गया। सटीक जानकारी होने पर अधिकारियों व विशेषज्ञों को बताया। बाघिन को ट्रैक करने के लिए वह सुबह चार बजे रबर फैक्ट्री अपनी टीम के साथ पहुंच जाते थे। जहां 11 बजे तक कांबिंग और दोपहर 2.30 बजे से शाम 6.30 बजे तक दोबारा कांबिंग की गई।
दो दिन बाद बंद होना था आपरेशन टाइगर : प्रभागीय वन अधिकारी भारत लाल ने बताया कि आपरेशन टाइगर दो दिन बाद बंद किया जाना था। बारिश के चलते इसे रोकने का निर्णय लिया गया था। लेकिन डब्ल्यूटीआइ के सुशांत की मेहनत के चलते आपरेशन को रोकने से पहले ही सफलता मिल गई।