नेताजी जयंती स्पेशल : भूमिगत सुभाष ने तय किया था रूस तक सफर

आजाद हिंद फौज और देश के नायक सुभाष चंद्र बोस की जयंती (23 जनवरी) पर नेता जी पर आधारित किताब के कुछ संस्मरण पर एक रिपोर्ट...।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Wed, 23 Jan 2019 01:14 PM (IST) Updated:Wed, 23 Jan 2019 01:14 PM (IST)
नेताजी जयंती स्पेशल : भूमिगत सुभाष ने तय किया था रूस तक सफर
नेताजी जयंती स्पेशल : भूमिगत सुभाष ने तय किया था रूस तक सफर

बरेली(दीपेंद्र प्रताप सिंह) : देश-दुनिया के सबसे बड़े रहस्य में शुमार...आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस यानी नेताजी की विमान दुर्घटना में तथाकथित मौत? इस पर तमाम कुछ लिखा-पढ़ा गया। तत्कालीन केंद्र सरकार पर चौतरफा दबाव बना तो दिखावटी जांच हुईं। वर्ष 1956 में पहली, शाहनवाज की जांच रिपोर्ट से इसके सदस्य व नेताजी के भाई ने नाइत्तेफाकी रखी। फिर इंदिरा सरकार के समय जस्टिस गोपाल दास खोंसला की एक सदस्यीय कमेटी ने 1970 में जांच की। 1974 को उन्होंने भी आधारहीन जांच रिपोर्ट दी। फिर अटल जी की राजग सरकार ने 1999 में जस्टिस मनोज कुमार मुखर्जी से जांच कराई। आयोग ने 2005 में रिपोर्ट दी। मुखर्जी आयोग जांच में काफी हद तक साफ भी हुआ कि नेता जी की विमान दुर्घटना में मौत नहीं हुई। मूल रूप से बरेली के कल्लिया गांव निवासी और हाल में डेलापीर के पास कैलाशपुरम कॉलोनी निवासी रणजीत पांचाले की नेता जी पर तथ्यात्मक किताब 'भूमिगत सुभाष' इस दिशा में काफी कुछ कहती है। इसमें प्रामाणिक साक्ष्यों के साथ बताया कि जिस झूठे विमान हादसे में नेताजी की मौत बताई गई, उसके बाद वे काफी समय तक रूस में रहे। आजाद हिंद फौज और देश के नायक सुभाष चंद्र बोस की जयंती (23 जनवरी) पर नेता जी पर आधारित किताब के कुछ संस्मरण पर एक रिपोर्ट...। 

यूं फैली थी मौत की झूठी सूचना

23 अगस्त वर्ष 1945 को टोकियो रेडियो ने समाचार प्रसारित किया, ''18 अगस्त को एक विमान दुर्घटना में घायल होने की वजह से ताइपेइ अस्पताल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का देहावसान हो गया था।ÓÓ पांच दिनों बाद प्रसारित समाचार की देरी ने नेताजी की मौत को कटघरे में खड़ा किया। जापानी सरकार ने ब्रितानी-अमेरिकी जांच दल के सामने नेताजी की मौत के पांच चित्र पेश किए थे। इनमें तीन विमान हादसे के थे। एक अन्य फोटो में कंबल से पूरी तरह ढकी लाश (इसे ही नेताजी का शव बताया गया) और पांचवी फोटो में कर्नल हबीर्बुरहमान को अस्थि कलश के पास बैठा दिखाया। किसी फोटो में नेता जी की फोटो नहीं थी।

जापानी सैनिक को बता दिया था नेताजी

जैसी सूचना जापान सरकार ने फैलाई कि विमान दुर्घटना में घायल होने के बाद नेताजी की ताइपेई अस्पताल में मौत हुई। बावजूद इसके सरकार मृत्यु का प्रमाण पत्र और जहां दाह संस्कार हुआ, वहां से कोई रिकॉर्ड नहीं दिखा पाई। एक पेश मृत्यु प्रमाण पत्र का मूल जापानी काटाकाना भाषा से अंग्र्रेजी में अनुवाद किया गया तो नकली निकला। यह प्रमाण पत्र जापानी सैनिक ओकारा ओचिरो (सैनिक संख्या 21123) का था, जो हार्ट अटैक से 19 अगस्त 1945 को मरा था। कई सालों बाद जांच के दौरान ताइपेई में भी वीआर त्सेंग समेत तमाम लोगों ने बयान दिए कि विमान दुर्घटना 1945 नहीं बल्कि सन् 1944 में हुई थी।

नेताजी सोवियत संघ में रहे, इसके कई प्रमाण

मार्च 1946 में तेहरान स्थित रूस के उपवाणिज्य दूत मोराडाफ ने भी कहा था कि बोस रूस में हैं, जहां वे गुप्त रूप से आजाद ङ्क्षहद फौज की लाइन पर रूसियों के एक ग्रुप को संगठित कर रहे हैं। ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट (नंबर 10, मिस्लेनियस, आइएनए) में नेताजी के जापान पराजय के बाद रूस के मास्को पहुंचने की बात है। नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोस ने पहली जांच समिति की अपनी रिपोर्ट में भी इसका हवाला दिया है। उसी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि बोस ने पंडित नेहरू को पत्र लिखा। इसमें कहा कि वे रूस में हैं और भारत आना चाहते हैं।

बरेली में भी रही आजाद हिंद फौज की बयार

आजाद हिंद फौज में बरेली से भी दो लोगों ने अगुवाई की थी। स्वतंत्रता सेनानी कर्नल अमर बहादुर सिंह सिंगापुर में आजाद हिंद ऑफीसर्स ट्रेनिंग स्कूल में जवानों को प्रशिक्षण देकर युद्ध के लिए तैयार करते थे। उनका घर सिविल लाइंस बरेली में था। पिछले साल उनका स्वर्गवास हो गया। स्वतंत्रता सेनानी झम्मन लाल आजाद पहले ब्रिटिश फौज में नायक थे। नेताजी के संपर्क में आकर उनकी फौज में सैन्य अफसर बने। इनकी मौत कुछ साल पहले हो गई।

मेजर सत्यगुप्त ने किया था मुलाकात का दावा

किताब के अनुसार, नेताजी ने वर्ष 1928 में बंगाल वॉलंटियर्स का गठन किया था। अपने घनिष्ठ कर्मी कोलकाता निवासी सत्यगुप्त को इसका मेजर बनाया था। मेजर 24 अक्टूबर 1961 में बंगाल के कूच बिहार जिला स्थित शौलमारी आश्रम नेताजी की खोज में गए थे। जहां उन्होंने नेताजी से कई घंटे की मुलाकात का दावा किया था। इसके बाद वह नेताजी के जीवित होने का प्रचार प्रसार करने देश भ्रमण पर निकले। जीवन के अंतिम दिनों में वह अखिल भारतीय सुभाष वादी जनता संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बरेली निवासी डॉ. श्रीनिवास गोयल के आवास पर ही रहे। यहां सुभाषवादी गजेंद्र स्वरूप से उन्होंने कहा था कि कन्फ्यूज, मिस्ट्री और स्ट्रगल ही नेताजी के रास्ते हैं।  

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