गांवों में कंटेनर क्लीनिक के जरिये पहुंच रहा इलाज, जांच की मशीनें और डाक्टर के साथ जानें क्लीनिक में और क्या-क्या हैं सुविधाएं

Treatment in Villages through Container Clinics सब स्वस्थ सब समृद्ध। सुदूर गांवों के लिए ऐसा सोचने में भी चुनौतियां दिखाई देती नजर आती हैं। सरकारी अस्पताल कई किलोमीटर दूर हैं बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। स्वास्थ्य के लिए प्रति सतर्कता नहीं है।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Wed, 01 Dec 2021 07:08 PM (IST) Updated:Thu, 02 Dec 2021 10:01 AM (IST)
गांवों में कंटेनर क्लीनिक के जरिये पहुंच रहा इलाज, जांच की मशीनें और डाक्टर के साथ जानें क्लीनिक में और क्या-क्या हैं सुविधाएं
उप्र के बरेली के भैैरपुर गांव में बना कंटेनर क्लीनिक।

बरेली, (दीपेंद्र प्रताप सिंह)। Treatment in Villages through Container Clinics : सब स्वस्थ, सब समृद्ध। सुदूर गांवों के लिए ऐसा सोचने में भी चुनौतियां दिखाई देती नजर आती हैं। सरकारी अस्पताल कई किलोमीटर दूर हैं, बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। स्वास्थ्य के लिए प्रति सतर्कता नहीं है। ऐसे गांवों में ग्रामीणों की सेहत संवारने के लिए कंटेनर में अस्पताल चल निकले हैैं। श्री राममूर्ति स्मारक मेडिकल कालेज (एसआरएमएस) ने कंप्यूटर कंपनी हैवलेट पैकर्ड (एचपी) के सहयोग से कंटेनर अस्पताल तैयार किया है। जिसमें डाक्टर, ड्रेसिंग रूम, जांच की मशीनें और दवा तो हैं ही, गंभीर मरीजों को देखने और इलाज के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा भी दी गई है।

कार्गो कंटेनर में बना यह अस्पताल फिलहाल उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में उत्तराखंड सीमा से सटे बहेड़ी के भैरपुर गांव में है। भोजीपुरा स्थित मेडिकल कालेज से एक डाक्टर, तीन स्वास्थ्य कर्मी प्रतिदिन वहां पहुंचते हैं। वाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) में पांच रुपये के पर्चे पर मरीजों को देखा जाता है। इसी शुल्क में खून, मधुमेह, ब्लड प्रेशर, एक्स-रे ईसीजी आदि जांचें कर दवाएं दी जाती हैं। यहां रोजाना औसतन 150 मरीजों को देखा जाता है।

प्राथमिक उपचार के लिए ड्रेसिंग रूम: हादसे या किसी अन्य वजह से घायल हुए लोगों को प्राथमिक उपचार व हड्डी की चोट आदि के लिए ड्रेसिंग रूम बनाया गया है। बड़ा आपरेशन होने की स्थिति में मरीज को मेडिकल कालेज भेजने की सुविधा दी जाती है। आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के आपरेशन का खर्च मेडिकल कालेज उठाता है।

प्रति माह करीब छह लाख का खर्च: कंटेनर में जेनरेटर, डाक्टर, तीन स्वास्थ्य कर्मियों, चार अन्य स्टाफ का वेतन, दवा-जांच मशीनों का मेंटीनेंस, वीडियो कांफ्रेंसिंग के लिए लगाया गया टावर, गार्ड आदि का खर्च जोड़ें तो हर माह करीब छह लाख रुपये खर्च होते हैं। कंटेनर क्लीनिक में उपचार करने वाले डा. वैभव बताते हैं कि देहात क्षेत्र में बेहतर सुविधा मिल सके, इसके लिए मेडिकल कालेज यह खर्च उठाता है। अमेरिकी कंपनी एचपी से इस सुविधा का अनुबंध हुआ है। एचपी ने कंटेनर और टेक्नोलाजी दी है। बाकी खर्च मेडिकल कालेज उठाता है। दो कंटेनर दिए गए थे। एक तैयार कर प्रयोग में है जबकि दूसरा जल्द ही संचालित होगा। गंभीर मरीजों को परामर्श देने के लिए मेडिकल कालेज में उपलब्ध विशेषज्ञ चिकित्सकों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जोड़ा जाता है। इसका पूरा सिस्टम लगा हुआ है।

कोरोना काल में काफी उपयोगी साबित हुआ था कंटेनर : कोरोना काल में यह कंटेनर अस्पताल शुरू किया गया था। तब ग्रामीण इलाके में जांच के लिए इसे ही स्क्रीनिंग सेंटर बनाया गया था। ग्रामीण क्षेत्र में कंटेनर क्लीनिक को जरूरत के हिसाब से रखने की व्यवस्था है।

जरूरत पर दूसरे गांव में पहुंचाया जा सकता है कंटेनरः कंटेनर को बडेे ट्रक की मदद से भैरपुर गांव तक पहुंचाया गया। यदि किसी अन्य गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं की ज्यादा जरूरत महसूस होगी तो इस कंटेनर को क्रेन की मदद से ट्रक पर रखकर वहां पहुंचाया जा सकता है। संबंधित गांव का चयन श्रीराममूर्ति स्मारक मेडिकल कालेज करता है। एसआरएमएस मेडिकल कालेज के निदेशक आदित्य मूर्ति ने बताया कि एचपी के साथ हुए अनुबंध के बाद हमने दो कंटेनर क्लीनिक लिए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में जरूरत के हिसाब से इसे भेजा गया है।

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