Tokyo Olympic 2020: बरेली की बेटियों के जुनून के आगे नहीं टिकी सरकारी नौकरियां, बोलीं- अभी तो भरनी है ऊंची उड़ान

Tokyo Olympic 2020 तीरंदाजी हो या ताइक्वांडो या फिर कोई भी खेल। लगभग हर खेल कोटे से सरकारी विभागों में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के लिए नौकरियां हैं। लेकिन स्थानीय खिलाड़ियों को समय न मिल पाने के कारण सरकारी नौकरी रास नहीं आ रहीं।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 09:38 AM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 09:38 AM (IST)
Tokyo Olympic 2020: बरेली की बेटियों के जुनून के आगे नहीं टिकी सरकारी नौकरियां, बोलीं- अभी तो भरनी है ऊंची उड़ान
Tokyo Olympic 2020: बरेली की बेटियों के जुनून के आगे नहीं टिकी सरकारी नौकरियां

बरेली, जेएनएन। Tokyo Olympic 2020: तीरंदाजी हो या ताइक्वांडो या फिर कोई भी खेल। लगभग हर खेल कोटे से सरकारी विभागों में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के लिए नौकरियां हैं। लेकिन, स्थानीय खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी रास नहीं आ रहीं। उनकी रुचि ओलिंपिक के साथ ही एशिया व अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर होने वाली चैंपियनशिप में देश का नाम रोशन या युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देकर उनका नाम फलक पर ले जाने में है।

अभी सफर खत्म नहीं हुआ है। अभी तो ऊंची उड़ान भरनी है। उन बच्चों को उस मुकाम ले जाना है। जहां हर एक खिलाड़ी के पहुंचने का सपना होता है। वर्ष 2004 के ओलिंपिक में बरेली के फतेहगंज पूर्वी के निवदिया गांव की सुमंगला शर्मा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। वर्ष 2008 में खेल कोटे से नौकरी लग गई। बताया कि नौकरी के बाद अभ्यास को समय नहीं मिलता था और जिस दिन अभ्यास न हो उस दिन ऐसा लगता था कि न जाने आज क्या छूट गया हो। ऐसे उन्होंने तीन वर्ष के बाद नौकरी छोड़ दी। वर्तमान में वह बच्चों को तीरंदाजी के गुर सीखा कर उनका नाम फलक पर चमकाने में जुटी हैं।

कुछ यही कहानी बरेली की शालिनी की भी है। जिन्होंने राष्ट्रीय ताइक्वांडो चैंपियनशिप में स्वर्ण और अंतरराष्ट्रीय ताइक्वांडो चैंपियनशिप रजत जीतकर बरेली का मान बढ़ाया। वर्ष 2010 में भोजीपुरा के गर्वेंमेंट स्कूल में शिक्षिका के रुप में नौकरी की। लेकिन, खेल से दूरियां बढ़ने की वजह से उन्होंने वर्ष 2012 में नौकरी छोड़ दी। अब वह रेलवे स्पोर्ट्स स्टेडियम में बच्चों को प्रशिक्षित कर रही हैं। बताती हैं कि वर्तमान में वह 450 से अधिक बच्चों को प्रशिक्षित कर रही हैं।

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